यशोधरा किसकी रचना है

  1. हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य MCQ Practice Quiz 1
  2. यशोधरा
  3. यशोधरा : मैथिलीशरण गुप्त
  4. मैथिलीशरण गुप्त
  5. यशोधरा (काव्य)
  6. यशोधरा
  7. हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य MCQ Practice Quiz 1
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  9. मैथिलीशरण गुप्त
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हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य MCQ Practice Quiz 1

हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य is very important topic of सामान्य हिंदी व्याकरण in the exam point of view. We are going to share the set of 20 Multiple Choice Questions in this post. Complete the all practice set of this topic that are provided by Super Pathshala. GK questions of this post "हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य MCQ Practice Quiz 1" are very helpful for various government exams e.g. UPSC, SSC, Railway, Banking, State PSC, CDS, NDA, SSC CGL, SSC CHSL, Patwari, Samvida, Police, MP SI, CTET, TET, Army, MAT, CLAT, NIFT, IBPS PO, IBPS Clerk, CET, Vyapam etc. General Knowledge or Samanya Gyan is very important section to crack any exam. In this section we are providing GK in Hindiand GK Questions in Englishin another section. These Online Quizcontain the previous year asked questions in various govt exams, so practice these Online GK Test in Hindiat least one set of each subject daily. Get also all other subjects GK Questions and Answers in MCQ format from Super Pathshala. Complete Chapter wise/Topic wise Objective GK in Hindi [

यशोधरा

यशोधरा एक राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा एक आदर्श नारी यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आर्दश पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

यशोधरा : मैथिलीशरण गुप्त

राम, तुम्हारे इसी धाम में नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ, इसी देश में हमें जन्म दो, लो, प्रणाम हे नीरजनाभ । धन्य हमारा भूमि-भार भी, जिससे तुम अवतार धरो, भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे, हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ ! 1 घूम रहा है कैसा चक्र ! वह नवनीत कहां जाता है, रह जाता है तक्र । पिसो, पड़े हो इसमें जब तक, क्या अन्तर आया है अब तक ? सहें अन्ततोगत्वा कब तक- हम इसकी गति वक्र ? घूम रहा है कैसा चक्र ! कैसे परित्राण हम पावें ? किन देवों को रोवें-गावें ? पहले अपना कुशल मनावें वे सारे सुर-शक्र ! घूम रहा है कैसा चक्र ! बाहर से क्या जोड़ूँ-जाड़ूँ ? मैं अपना ही पल्ला झाड़ूँ । तब है, जब वे दाँत उखाड़ूँ, रह भवसागर-नक्र ! घूम रहा है कैसा चक्र ! देखी मैंने आज जरा ! हो जावेगी क्या ऐसी ही मेरी यशोधरा? हाय ! मिलेगा मिट्टी में यह वर्ण-सुवर्ण खरा? सूख जायगा मेरा उपवन, जो है आज हरा? सौ-सौ रोग खड़े हों सन्मुख, पशु ज्यों बाँध परा, धिक्! जो मेरे रहते, मेरा चेतन जाय चरा! रिक्त मात्र है क्या सब भीतर, बाहर भरा-भरा? कुछ न किया, यह सूना भव भी यदि मैंने न तरा । मरने को जग जीता है ! रिसता है जो रन्ध्र-पूर्ण घट, भरा हुआ भी रीता है । यह भी पता नहीं, कब, किसका समय कहाँ आ बीता है ? विष का ही परिणाम निकलता, कोई रस क्या पीता है ? कहाँ चला जाता है चेतन, जो मेरा मनचीता है? खोजूंगा मैं उसको, जिसके बिना यहाँ सब तीता है । भुवन-भावने, आ पहुंचा मैं, अब क्यों तू यों भीता है ? अपने से पहले अपनों की सुगति गौतमी गीता है । कपिलभूमि-भागी, क्या तेरा यही परम पुरुषार्थ हाय ! खाय-पिये, बस जिये-मरे तू, यों ही फिर फिर आय-जाय ? अरे योग के अधिकारी, कह, यही तुझे क्या योग्य हाय ! भोग-भोग कर मरे रोग में, बस वियोग ही हाथ आय ? सोच हिमालय के अधिवासी, यह...

मैथिलीशरण गुप्त

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 जयन्ती • 3 कृतियाँ • 3.1 गुप्त जी के नाटक • 4 काव्यगत विशेषताएँ • 4.1 राष्ट्रीयता तथा गांधीवाद • 4.2 गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता • 4.3 दार्शनिकता • 4.4 रहस्यात्मकता एवं आध्यात्मिकता • 4.5 नारी मात्र की महत्ता का प्रतिपादन • 4.6 पतिवियुक्ता नारी का वर्णन • 4.7 प्रकृति वर्णन • 5 भाषा शैली • 6 टिप्पणी • 7 इन्हें भी देखें • 8 सन्दर्भ • 9 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त १८८६ में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में कनकलता नाम से कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग" तथा बाद में "जयद्रथ वध" प्रकाशित हुई। उन्होंने साहित्य सदन नाम से स्वयं की प्रैस शुरू की और झांसी में १९५४-५५ में मानस-मुद्रण की स्थापना की। इसी वर्ष रसिकेन्द्र नाम से वैश्योपकारक ( वेंकटेश्वर ( मोहिनी ( इंदु, प्रभा जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं। विदग्ध हृदय नाम से उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं। जयन्ती कृतियाँ • महाकाव्य- साकेत 1931, यशोधरा 1932 • खण्डकाव्य- जयद्रथ वध 1910, भारत-भारती 1912, पंचवटी 1925, द्वापर 1936, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान 1917, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल 1929, जय भारत 1952, युद्ध, झंकार 1929 , पृथ्वीपुत्र, वक संहार शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला • नाटक - रंग में भंग 1909, राजा-प्रजा, वन वैभव सैरन्ध्री हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास • मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली (मौलिक तथा अनूदित समग्र कृतियों का संकलन 12 खण्डों में, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित, लेखक-संपादक: डॉ. कृष्णदत्त पा...

यशोधरा (काव्य)

अनुक्रम • 1 उद्देश्य • 2 भाषा शैली • 3 प्रबंध काव्य • 4 यशोधरा: एक आदर्श नारी • 4.1 विरहिणी • 4.2 अनुरागिनी • 4.3 जननी • 4.4 मानिनी • 5 बाहरीकड़ियाँ उद्देश्य [ ] यशोधरा का उद्देश्य है पति-परित्यक्तों यशोधरा के हार्दिक दु:ख की व्यंजना तथा == कथानक ==कथारम्भ गौतम के वैराग्य चिंतन से होता है। जरा, रोग, मृत्यु आदि के दृश्यों से वे भयभीत हो उठते हैं। अमृत तत्व की खोज के लिए गौतम पत्नी और पुत्र को सोते हुए छोड़कर 'महाभिनिष्क्रमण' करते हैं। यशोधरा का निरवधि विरह अत्यंत कारुणिक है। विरह की दारुणता से भी अधिक उसको खलता है प्रिय का "चोरी-चोरी जाना"। इसर समझती है परंतु उसे मरण का भी अधिकार नहीं है, क्योंकि उस पर राहुल के पालन-पोषण का दायित्व है। फलत: "आँचल में दूध" और "आँखों में पानी" लिए वह जीवनयापन करती है। सिद्धि प्राप्त होने पर बुद्ध लौटते हैं, सब लोग उनका स्वागत करते हैं परंतु मानिनी यशोधरा अपने कक्ष में रहती हैं। अंतत: स्वयं भगवान उसके द्वार पहुँचते हैं और भीख माँगते हैं। यशोधरा उन्हें अपनी अमूल्य निधि राहुल को दे देती है तथा स्वयं भी उनका अनुसरण करती है। इस कथा का पूर्वार्द्ध एवं इतिहास प्रसिद्ध है पर उत्तरार्द्ध कवि की अपनी उर्वर कल्पना की सृष्टि है। भाषा शैली [ ] 'यशोधरा' का प्रमुख रस शृंगार है, शृंगार में भी केवल विप्रलम्भ। संयोग का तो एकांताभाव है। शृंगार के अतिरिक्त इसमें करुण, शांत एवं वात्सल्य भी यथास्थान उपलब्ध हैं। प्रस्तुत काव्य में छायावादी शिल्प का आभास है। उक्ति को अद्भुत कौशल से चमत्कृत एवं सप्रभाव बनाया गया है। यशोधरा की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है- प्रौढ़ता, कांतिमयता और गीतिकाव्य के उपयुक्त मृदुलता और मसृणता उसके विशेष गुण हैं, इस प्रकार यशोधरा एक उत्कृष्ट रचना सिद...

यशोधरा

यशोधरा एक राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा एक आदर्श नारी यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आर्दश पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य MCQ Practice Quiz 1

हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य is very important topic of सामान्य हिंदी व्याकरण in the exam point of view. We are going to share the set of 20 Multiple Choice Questions in this post. Complete the all practice set of this topic that are provided by Super Pathshala. GK questions of this post "हिंदी साहित्य : मुख्य तथ्य MCQ Practice Quiz 1" are very helpful for various government exams e.g. UPSC, SSC, Railway, Banking, State PSC, CDS, NDA, SSC CGL, SSC CHSL, Patwari, Samvida, Police, MP SI, CTET, TET, Army, MAT, CLAT, NIFT, IBPS PO, IBPS Clerk, CET, Vyapam etc. General Knowledge or Samanya Gyan is very important section to crack any exam. In this section we are providing GK in Hindiand GK Questions in Englishin another section. These Online Quizcontain the previous year asked questions in various govt exams, so practice these Online GK Test in Hindiat least one set of each subject daily. Get also all other subjects GK Questions and Answers in MCQ format from Super Pathshala. Complete Chapter wise/Topic wise Objective GK in Hindi [

यशोधरा (काव्य)

अनुक्रम • 1 उद्देश्य • 2 भाषा शैली • 3 प्रबंध काव्य • 4 यशोधरा: एक आदर्श नारी • 4.1 विरहिणी • 4.2 अनुरागिनी • 4.3 जननी • 4.4 मानिनी • 5 बाहरीकड़ियाँ उद्देश्य [ ] यशोधरा का उद्देश्य है पति-परित्यक्तों यशोधरा के हार्दिक दु:ख की व्यंजना तथा == कथानक ==कथारम्भ गौतम के वैराग्य चिंतन से होता है। जरा, रोग, मृत्यु आदि के दृश्यों से वे भयभीत हो उठते हैं। अमृत तत्व की खोज के लिए गौतम पत्नी और पुत्र को सोते हुए छोड़कर 'महाभिनिष्क्रमण' करते हैं। यशोधरा का निरवधि विरह अत्यंत कारुणिक है। विरह की दारुणता से भी अधिक उसको खलता है प्रिय का "चोरी-चोरी जाना"। इसर समझती है परंतु उसे मरण का भी अधिकार नहीं है, क्योंकि उस पर राहुल के पालन-पोषण का दायित्व है। फलत: "आँचल में दूध" और "आँखों में पानी" लिए वह जीवनयापन करती है। सिद्धि प्राप्त होने पर बुद्ध लौटते हैं, सब लोग उनका स्वागत करते हैं परंतु मानिनी यशोधरा अपने कक्ष में रहती हैं। अंतत: स्वयं भगवान उसके द्वार पहुँचते हैं और भीख माँगते हैं। यशोधरा उन्हें अपनी अमूल्य निधि राहुल को दे देती है तथा स्वयं भी उनका अनुसरण करती है। इस कथा का पूर्वार्द्ध एवं इतिहास प्रसिद्ध है पर उत्तरार्द्ध कवि की अपनी उर्वर कल्पना की सृष्टि है। भाषा शैली [ ] 'यशोधरा' का प्रमुख रस शृंगार है, शृंगार में भी केवल विप्रलम्भ। संयोग का तो एकांताभाव है। शृंगार के अतिरिक्त इसमें करुण, शांत एवं वात्सल्य भी यथास्थान उपलब्ध हैं। प्रस्तुत काव्य में छायावादी शिल्प का आभास है। उक्ति को अद्भुत कौशल से चमत्कृत एवं सप्रभाव बनाया गया है। यशोधरा की भाषा शुद्ध खड़ीबोली है- प्रौढ़ता, कांतिमयता और गीतिकाव्य के उपयुक्त मृदुलता और मसृणता उसके विशेष गुण हैं, इस प्रकार यशोधरा एक उत्कृष्ट रचना सिद...

मैथिलीशरण गुप्त

अनुक्रम • 1 जीवन परिचय • 2 जयन्ती • 3 कृतियाँ • 3.1 गुप्त जी के नाटक • 4 काव्यगत विशेषताएँ • 4.1 राष्ट्रीयता तथा गांधीवाद • 4.2 गौरवमय अतीत के इतिहास और भारतीय संस्कृति की महत्ता • 4.3 दार्शनिकता • 4.4 रहस्यात्मकता एवं आध्यात्मिकता • 4.5 नारी मात्र की महत्ता का प्रतिपादन • 4.6 पतिवियुक्ता नारी का वर्णन • 4.7 प्रकृति वर्णन • 5 भाषा शैली • 6 टिप्पणी • 7 इन्हें भी देखें • 8 सन्दर्भ • 9 बाहरी कड़ियाँ जीवन परिचय मैथिलीशरण गुप्त का जन्म ३ अगस्त १८८६ में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में कनकलता नाम से कविता रचना आरम्भ किया। आचार्य प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग" तथा बाद में "जयद्रथ वध" प्रकाशित हुई। उन्होंने साहित्य सदन नाम से स्वयं की प्रैस शुरू की और झांसी में १९५४-५५ में मानस-मुद्रण की स्थापना की। इसी वर्ष रसिकेन्द्र नाम से वैश्योपकारक ( वेंकटेश्वर ( मोहिनी ( इंदु, प्रभा जैसी पत्रिकाओं में छपती रहीं। विदग्ध हृदय नाम से उनकी अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुईं। जयन्ती कृतियाँ • महाकाव्य- साकेत 1931, यशोधरा 1932 • खण्डकाव्य- जयद्रथ वध 1910, भारत-भारती 1912, पंचवटी 1925, द्वापर 1936, सिद्धराज, नहुष, अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, किसान 1917, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल 1929, जय भारत 1952, युद्ध, झंकार 1929 , पृथ्वीपुत्र, वक संहार शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला • नाटक - रंग में भंग 1909, राजा-प्रजा, वन वैभव सैरन्ध्री हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास • मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली (मौलिक तथा अनूदित समग्र कृतियों का संकलन 12 खण्डों में, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित, लेखक-संपादक: डॉ. कृष्णदत्त पा...

यशोधरा : मैथिलीशरण गुप्त

राम, तुम्हारे इसी धाम में नाम-रूप-गुण-लीला-लाभ, इसी देश में हमें जन्म दो, लो, प्रणाम हे नीरजनाभ । धन्य हमारा भूमि-भार भी, जिससे तुम अवतार धरो, भुक्ति-मुक्ति माँगें क्या तुमसे, हमें भक्ति दो, ओ अमिताभ ! 1 घूम रहा है कैसा चक्र ! वह नवनीत कहां जाता है, रह जाता है तक्र । पिसो, पड़े हो इसमें जब तक, क्या अन्तर आया है अब तक ? सहें अन्ततोगत्वा कब तक- हम इसकी गति वक्र ? घूम रहा है कैसा चक्र ! कैसे परित्राण हम पावें ? किन देवों को रोवें-गावें ? पहले अपना कुशल मनावें वे सारे सुर-शक्र ! घूम रहा है कैसा चक्र ! बाहर से क्या जोड़ूँ-जाड़ूँ ? मैं अपना ही पल्ला झाड़ूँ । तब है, जब वे दाँत उखाड़ूँ, रह भवसागर-नक्र ! घूम रहा है कैसा चक्र ! देखी मैंने आज जरा ! हो जावेगी क्या ऐसी ही मेरी यशोधरा? हाय ! मिलेगा मिट्टी में यह वर्ण-सुवर्ण खरा? सूख जायगा मेरा उपवन, जो है आज हरा? सौ-सौ रोग खड़े हों सन्मुख, पशु ज्यों बाँध परा, धिक्! जो मेरे रहते, मेरा चेतन जाय चरा! रिक्त मात्र है क्या सब भीतर, बाहर भरा-भरा? कुछ न किया, यह सूना भव भी यदि मैंने न तरा । मरने को जग जीता है ! रिसता है जो रन्ध्र-पूर्ण घट, भरा हुआ भी रीता है । यह भी पता नहीं, कब, किसका समय कहाँ आ बीता है ? विष का ही परिणाम निकलता, कोई रस क्या पीता है ? कहाँ चला जाता है चेतन, जो मेरा मनचीता है? खोजूंगा मैं उसको, जिसके बिना यहाँ सब तीता है । भुवन-भावने, आ पहुंचा मैं, अब क्यों तू यों भीता है ? अपने से पहले अपनों की सुगति गौतमी गीता है । कपिलभूमि-भागी, क्या तेरा यही परम पुरुषार्थ हाय ! खाय-पिये, बस जिये-मरे तू, यों ही फिर फिर आय-जाय ? अरे योग के अधिकारी, कह, यही तुझे क्या योग्य हाय ! भोग-भोग कर मरे रोग में, बस वियोग ही हाथ आय ? सोच हिमालय के अधिवासी, यह...