श्री.

  1. जङ्गबहादुर राणा
  2. कृष्ण
  3. श्री
  4. श्री हरि स्त्रोतम लिरिक्स
  5. श्रीसूक्त
  6. कृष्ण लीला
  7. श्रीलंका
  8. श्री हरि स्तोत्रम्
  9. About Shri Hit Premanand Govind Sharan Maharaj Ji


Download: श्री.
Size: 5.20 MB

जङ्गबहादुर राणा

बालनरसिंह कुँवर; उनका पिता उनको बुबा काजी प्रारम्भिक जीवन [ ] जङ्गबहादुर ११ वर्ष छँदा काजी प्रसादसिंह बस्न्यातकी भित्रिनी पट्टिकी छोरी प्रसादकुमारीसँग कुमारग्रह उतारी विवाह भएको थियो। जङ्गबहादुर सेवामुक्त भएर हिँडिरहेको बेला वि.सं. १८९७ को माघ महिनामा हात्ती खेदामा आफ्नो बहादुरी देखाउँदा तत्कालीन राजा आफ्नो प्रारम्भिक दिनमा जङ्गबहादुर लफङ्गा, जुवाडे रहेको भएता पनि आफ्नो साहस, वीरता र चतुरपनका कारण नेपालको इतिहासमा एक सफल नायकका रूपमा चिनिने गर्छन्। वृत्ति [ ] युवराज सुरेन्द्रको अङ्गरक्षक [ ] नेपालका तत्कालीन युवराज सुरेन्द्रको स्वभाव रोमाञ्चकारी र सनकपूर्ण थियो। उनको अङ्गरक्षक रूपमा कार्य गर्दा जङ्गबहादुरले युवराजद्वारा दिइएको जोखिमपूर्ण, साहसिक र खतरनाक आदेशहरू पालना गर्नुपरेको थियो। जसमा यस्तै वीरतापूर्वक कार्यको सराहना गर्दै उनलाई तत्कालीन राजा राजेन्द्रको आठपहरियामा नियुक्त गरिएको थियो। त्यहाँ काम गरेर अनुभव बटुलेपछि उनलाई तत्कालीन राजा राजेन्द्रले माथवरसिंहको हत्या [ ] मुख्य लेख: वि. सं. १९०१ मा माथवरसिंह थापा काठमाडौ फर्केपछि देशमा शान्ति व्यवस्थाको आगमन हुने अड्कलबाजी गरिएको थियो। जङ्गबहादुर कुँवरकाका काकाका छोरा देवीबहादुर कुँवर एउटा राजनीतिक अपराधमा फसेका थिए। यिनलाई प्राणदण्द दिइने निश्चितप्रायः थियो। यिनलाई बचाइन आवश्यक सहयोग गर्न जङ्गबहादुरले आफ्ना मामा माथवरसिंह थापा संग आग्रह पनि गरेका थिए। चाहेका भए मुख्तियार माथवरसिंह थापाले कप्तान देवीबहादुर कुँवरलाई प्राणदण्डको सजायबाट बचाउन पनि सक्थे। तर चाहेनन्। फलस्वरूप उनलाई प्राणदण्ड मिलेको थियो। यस घटना बाट जङ्गबहादुर कुँवर आफ्ना मामा मुख्तियार माथवरसिंह थापा संग क्रुद्ध थिए। मामा माथवरसिंहको सहानुभूति पाएर राजदरबार...

कृष्ण

श्रीकृष्ण, कृष्ण बाल्यावस्था में ही उन्होंने बड़े-बड़े कार्य किए जो किसी सामान्य मनुष्य के लिए सम्भव नहीं थे। अपने जन्म के कुछ समय बाद ही कंस द्वारा भेजी गई राक्षसी पूतना का वध किया , उसके बाद शकटासुर, तृणावर्त आदि राक्षस का वध किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ गए वहां पर भी उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला आदि मुख्य है। इसके बाद मथुरा में मामा अनुक्रम • 1 नाम और उपशीर्षक • 2 चित्रण • 3 ऐतिहासिक और साहित्यिक स्रोत • 3.1 भारतीय-यूनानी मुद्रण • 3.2 हेलीडियोरस स्तंभ और अन्य शिलालेख • 4 जीवन और किवदंतियां • 4.1 अवतरण एवं महाप्रयाण • 4.2 बाल्यकाल और युवावस्था • 4.3 वयस्कता • 4.4 कुरुक्षेत्र का महाभारत युद्ध • 4.5 श्रीमद भगवद्गीता • 4.6 संस्करण और व्याख्याएं • 5 संभावित तिथियां • 6 दर्शन और धर्मशास्त्र • 7 प्रभाव • 7.1 वैष्णववाद • 7.2 प्रारंभिक परंपराएं • 7.3 भक्ति परंपरा • 7.4 भारतीय उपमहाद्वीप • 7.4.1 एशिया के बाहर • 7.4.2 दक्षिण पूर्व एशिया • 8 प्रदर्शन कला • 9 अन्य धर्म • 9.1 जैन धर्म • 9.2 बौद्ध धर्म • 9.3 सिख धर्म • 9.4 बहाई पंथ • 9.5 अहमदिया • 9.6 अन्य • 10 यह भी देखें • 11 सन्दर्भ नाम और उपशीर्षक "कृष्ण" एक चित्रण कृष्ण भारतीय संस्कृति में कई विधाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका चित्रण आमतौर पर कृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है, और अक्सर अन्य चित्रण में, वे महाकाव्य कृष्ण के वैकल्पिक चित्रण में उन्हें एक बालक (बाल कृष्ण) के रूप में दिखाते हैं, एक बच्चा अपने हाथों और घुटनों पर रेंगते हुए ,नृत्य करते हुए , साथी मित्र ग्वाल बाल को चुराकर मक्खन देते हुए (मक्खन चोर), लड्डू को अपने हाथ में लेकर चलते हुए (ल...

श्री

Contents • 1 Hindi • 1.1 Etymology • 1.2 Pronunciation • 1.3 Noun • 1.3.1 Declension • 1.4 Proper noun • 2 Marathi • 2.1 Pronunciation • 2.2 Prefix • 3 Nepali • 3.1 Pronunciation • 3.2 Prefix • 4 Sanskrit • 4.1 Alternative forms • 4.2 Pronunciation • 4.3 Etymology 1 • 4.3.1 Adjective • 4.3.2 Noun • 4.3.2.1 Declension • 4.3.3 Prefix • 4.3.3.1 Usage notes • 4.3.3.2 Descendants • 4.4 Etymology 2 • 4.4.1 Root • 4.4.1.1 Derived terms • 4.4.2 References Hindi [ ] Etymology [ ] ( śrī ). Pronunciation [ ] • ( Delhi Hindi ) ( /ʃɾiː/ Noun [ ] श्री śrī) m • ( ) श्री राम ― śrī rām ― Lord Rama • Declension [ ] singular plural direct श्री śrī श्री śrī oblique श्री śrī śriyõ vocative श्री śrī śriyo Proper noun [ ] रागमाला में राग श्री श्री śrī) m • ( Indian classical music ) a • ( Indian classical music ) a ( kharahrapriy ) Marathi [ ] Pronunciation [ ] • ( /ɕɾi/, [ɕɾiː] Prefix [ ] श्री śrī-) • ( ) Nepali [ ] Pronunciation [ ] • ( [sri] • Phonetic Devanagari: Prefix [ ] श्री śrī-) • ( ) Sanskrit [ ] • ( Balinese script ) • ( Assamese script ) • ( Bengali script ) • ( Bhaiksuki script ) • ( Brahmi script ) • ( Grantha script ) • ( Gujarati script ) • ( Gurmukhi script ) • ( Javanese script ) • ( Khmer script ) • ( Kannada script ) • ( Lao script ) • ( Malayalam script ) • ( Modi script ) • ( Mongolian script ) • ( Manchu script ) • ( Burmese script ) • ( Nandinagari script ) • ( Newa script ) • ( Oriya script ) • ( Saurashtra script ) • ( Sharada script ) • ( Siddham script ) • ( Sinhales...

श्री हरि स्त्रोतम लिरिक्स

shri hari stotram lyrics in hindi : इस पोस्ट में हिन्दू भगवान श्री विष्णु जी की स्तुति दी गई है. श्री हरी जी सृष्टि के पालनहार है. जो सभी जीवों का पालन पोषण करते है. उनके अस्तित्व से ही जीव सृष्टि कायम रहती है. पुराणों के अनुसार भगवान महाविष्णु सभी जीवों में स्तिथ है. श्री हरी की आज्ञा से धरती पर जीवनचक्र चलता है. इस सृष्टि पर जब भी प्राण घातक संकट आता है. उस समय श्री हरी ही अवतार लेकर उस संकट का निवारण करते है. आसन भाषा में श्री हरी हमारे माता और पिता है. जो हमारा खयाल रखते है. और इसी भगवान श्री हरी की स्तुति में यह स्तोत्र Sri Swami Brahmananda जी ने लिखा है. इस स्तोत्र को पढने से हमारे कष्टों का निवारण होता है. 3.1 श्री हरी जी के और लेख पढ़े श्री हरि स्त्रोतम लिरिक्स | shri hari stotram lyrics in hindi | jagajjalapalam lyrics in hindi || अथ श्री हरी स्त्रोतम || जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं नभोनीलकायं दुरावारमायं सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं || सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं || रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं जलान्तर्विहारं धराभारहारं चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं || जराजन्महीनं परानन्दपीनं समाधानलीनं सदैवानवीनं जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं || कृताम्नायगानं खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं || समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं || सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वर...

श्रीसूक्त

हिरण्यवर्णामिति पञदशर्चस्य सूक्तस्य आनन्दकर्दमचिक्लीतेन्दिरासुता ऋषयः श्रीर्देवता आद्यास्तिस्रोऽनुष्टुभः चतुर्थी बृहती पञ्चमीषष्ठयौ त्रिष्टुभौ ततोऽष्टाऽवनुष्टुभः अन्त्या प्रस्तारपङ्क्तिः । हिरण्यवर्णाम् या पंधरा ऋचांच्या सूक्ताचे (कवी) इंदिरापुत्र आनंद, कर्दम, चिक्लीत हे ऋषी, लक्ष्मी देवता असून सुरुवातीच्या तीन ऋचा अनुष्टुभ, चौथी बृहती, पाचवी व सहावी त्रिष्टुभ नंतरच्या आठ अनुष्टुभ व शेवटची प्रस्तार छंदात आहेत. काही अभ्यासकांच्या मते, प्रत्येक ऋचेचा ऋषी,छंद, देवता आणि विनियोग वेगवेगळे आहेत. आनंद, कर्दम, चिक्लीत, श्रीदा आणि इंदिरा हे ऋषी; अग्नी आणि श्रीदेवी या देवता, ‘हिरण्यवर्णाम्’ हे बीज ‘ताम् म आवह’शक्ती; आणि ‘कीर्तिमृद्धिम्’ कीलक आहे. हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥ हे अग्ने (जातवेद),सोन्यासमान वर्ण असणा-या, सर्व पातकांचे हरण करणा-या (हरिणीसमान सुंदर,चपळ असणा-या), सोन्या-चांदीच्या माळा धारण करणा-या, चंद्राप्रमाणे (शीतल) असलेल्या सुवर्णमय लक्ष्मीला माझ्यासाठी आवाहन कर. तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥२॥ हे अग्ने, त्या कधीही दूर न जाणा-या (अविनाशी) लक्ष्मीला माझ्यासाठी आवाहन कर, जिच्याकडून मला धन, गाय, घोडा तसेच पुरुष (नातलग,मित्र) मिळावेत. अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥३॥ जिच्या मिरवणुकीत सुरुवातीला घोडे, मध्यभागी रथ आहेत (जी रथात बसलेली आहे), जेथे हत्ती ललकारी देत आहेत, अशा लक्ष्मीला मी आमंत्रित करतो. ती देवी मजवर कृपा करो. कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तांतर्पयन्तीम् । पद्मे स्थितां पद्मवर्णा...

कृष्ण लीला

कृष्ण लीला - कृष्ण भगवान की सम्पूर्ण जीवन गाथा श्री कृष्ण लीला अध्यात्म की सबसे प्रसिद्ध कथाओं में से एक है। कृष्ण को लोग बिलकुल अलग अलग रूपों में देखते थे। आइये पढ़ते हैं कृष्ण की कहानियाँ और जानते हैं कि दुर्योधन, शकुनी और शिखंडी जैसे लोग उनके बारे में क्या कहते थे। साथ ही जानते हैं उनकी कुछ लीलाएं। कृष्ण एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं। वो एक सज्जन पुरुष हैं, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं। जानते हैं उनके आस-पास के लोग उन्हें किस रूप में देखते थे। 1. कृष्ण के बारे में दुर्योधन, शकुनी और अन्य की राय दुर्योधन कृष्ण को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीकों से देखा और अनुभव किया है। इसे समझने के लिए दुर्योधन का उदाहरण लेते हैं। वह अपनी पूरी जिंदगी एक खास तरह की स्थितियों से घिरा रहा। इतिहास उसे एक ऐसे शख़्स की तरह देखता है, जो बहुत ही गुस्सैल, लालची और असुरक्षित था। वह हमेशा सब से ईर्ष्या करता रहा और सबका बुरा चाहता रहा। अपनी ईर्ष्या और लालच में उसने जो भी काम किये, वे उसके और उसके कुल के विनाश की वजह बन गए। ऐसा दुर्योधन कृष्ण के बारे में कहता है – “कृष्ण एक बहुत ही आवारा और मूढ़ व्यक्ति है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक शरारती मुस्कान रहती है। वह खा सकता है, पी सकता है, गा सकता है, प्रेम कर सकता है, झगड़ा कर सकता है, बड़े उम्र की महिलाओं के साथ वह गप्पें मार सकता है, और छोटे बच्चों के साथ खेल भी सकता है। ऐसे में कौन कहता है कि वह ईश्वर है?” शकुनी महाभारत का ही एक और चरित्र है...

श्रीलंका

राजधानी 6°54′N 79°54′E / 6.900°N 79.900°E / 6.900; 79.900 सबसे बड़ा नगर राजभाषा(एँ) अन्तरजातीय संवाद के लिए प्रयुक्त भाषा सरकार - स्थापना - 4 फ़रवरी 1948 - 22 मई 1972 - कुल ६५,६१०km 2( - जल(%) 4.4 जनसंख्या - 2009जनगणना २०,२४२,०००( - जुलाई 2008जनगणना 21,324,791 2008प्राक्कलन - कुल $92.018 बिलियन( - प्रति व्यक्ति $4,581( मुद्रा समय मण्डल ( यातायात चालन दिशा बाएं दूरभाष कूट ९४ श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) लंका के आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर मुख्य लेख: श्री लंका का पिछले 5००० वर्ष का लिखित इतिहास उपलब्ध है। 125,000 वर्ष पूर्व यहाँ मानव बस्तियाँ होने के प्रमाण मिले हैं। प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहल वंश का शासन रहा है। समय-समय पर दक्षिण भारतीय राजवंशों का भी आक्रमण भी इस पर होता रहा है। तीसरी सदी ईसा पूर्व में सोलहवीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने श्रीलंका में अपना व्यापार स्थापित किया। देश भूगोल [ ] हिन्द महासागर के उत्तरी भाग मे स्थित इस द्वीप राष्ट्र की भूमि केन्द्रीय पहाड़ों तथा तटीय मैदानों से मिलकर बनी है। वार्षिक वर्षा २५०० से ५००० मि.मी. तक होती है। वार्षिक तापमान का औसत मैदानी इलाकों में २७ डिग्री सेल्सियस तथा नुवर एलिय (ऊंचाई - १८०० मीटर) के इलाके में १५ डिग्री सेल्सियस रहता है। इस देश का विस्तार ६-१० गिग्री उत्तरी अक्षांश के मध्य होने, तथा चारो ओर समुद्र से घिरे होने की वजह से यह एक उष्ण कटिबंधीय जलवायु क्षेत्र है। यहां की औसत सापेक्षिक आर्द्रता दिन में ७०% से लेकर रात के समय में ९०% तक हो जाती है। विभाग [ ] मुख्य लेख: श्रीलंकाई गृहयुद्धश्रीलंकामें बहुसंख्यक सिंहला और अल्पस...

श्री हरि स्तोत्रम्

जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं नभोनीलकायं दुरावारमायं सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं ॥1 सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं ॥2 रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं जलान्तर्विहारं धराभारहारं चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं ॥3 जराजन्महीनं परानन्दपीनं समाधानलीनं सदैवानवीनं जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं ॥4 कृताम्नायगानं खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं ॥5 समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं ॥6 सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं सदा युद्धधीरं महावीरवीरं महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं ॥7 रमावामभागं तलानग्रनागं कृताधीनयागं गतारागरागं मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं ॥8 फलश्रुति इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे: स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो ॥ यह भी जानें • • • • • • • • • • • • Mantra Shri Krishna Mantra Brij Mantra Baal Krishna Mantra Janmashtami Mantra Krishna Damodar Mantra ISKCON Mantra Kartik Mantra Ekadashi Mantra Kartik Snan Mantra Ram Navmi Mantra Diwali Mantra Holi Mantra Phulera Dooj Mantra अन्य प्रसिद्ध श्री हरि स्तोत्रम् वीडियो

About Shri Hit Premanand Govind Sharan Maharaj Ji

Early Childhood: A Latent Spiritual Spark Pujya Maharaj Ji was born to a modest and extremely pious (सात्विक) Brahmin (Pandey) family and was named Aniruddh Kumar Pandey. He was born in Akhri Village, Sarsol Block, Kanpur, Uttar Pradesh. His grandfather was a Sanyaasi (सन्यासी) and the overall household environment was deeply devotional, utmost pure and serene. His father Shri Shambu Pandey was a devotional person and accepted Sanyaas (सन्यास) in later years. His mother Shrimati Rama Devi was very pious and had great respect for all saints. Both were regularly engaged in Sant-Seva (संत सेवा) and various devotional services. His elder brother enhanced the spiritual aura of the family by reciting verses from Shrimad Bhagvatam (श्रीमद् भागवतम्) which the entire family would listen to and cherish. The holy household environment intensified the latent spiritual spark concealed within him. Given this devotional family background, Maharaj Ji began reciting various prayers (चालीसा) at a very young age. When he was in class 5th, he started reading Gita Press Publication, Shri SukhSagar. At this tender age, he began to question the purpose of life. He was moved by the thought whether the love of parents is everlasting and if it is not, then why to engage in the happiness which is temporary? He questioned the importance of studying in school and gaining materialistic knowledge and how it would help him realize his goals. To seek answers he began chanting SHRI RAM JAI RAM JAI JAI RAM ...