शेखर एक जीवनी उपन्यास के लेखक हैं

  1. शेखर एक जीवनी विविध आयान
  2. 'शेखर: एक जीवनी' का लिखा जाना हिन्दी उपन्यास में एक नया और सर्वथा अप्रत्याशित मोड़ था
  3. शेखर एक जीवनी के रचयिता या रचनाकार
  4. शेखर एक जीवनी विविध आयाम हिन्दी पुस्तक
  5. शेखर एक जीवनी के प्रथम भाग का नाम क्या है?
  6. शेखर : एक जीवनी (उपन्यास) : अज्ञेय (हिंदी कहानी)


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शेखर एक जीवनी विविध आयान

भूमिका ः 7 आधारित कार्य-कारण परंपरा की स्वीकृति है। जो व्यक्ति को और कठोरता और निर्ममता से नर्मनिष्ठ बनाती है । शेखर के चित्र को भी प्राय: सही परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा गया है । वह एक आप्रही व्यक्ति है, धुन का पक्का है । सच्चे आचरण वाला है, ईमानदार है और जहाँ एक ओर राष्ट्र और समाज के लिए पूरी तौर पर समर्पित है वहीं अपने अंतर के सत्य के प्रति भी उतनी ही गहराई से निष्ठावान और समर्पित है । उसका चरित्र सामान्य नहीं है । इसलिए सामान्य कसौटियों पर उसे कसा भी नहीं जा सकता । वह ईमानदार इतना है कि अपने जीवन में उतरने वाली प्रत्येक नारी को अपने प्रत्यवलोकन के क्रम में अपने सम्बन्ध की परिधि में यथोचित स्थिति में रखकर देखता है और मजे की बात यह है कि उपन्यास में “'प्रवेश' में वह उनके क्रम को भी निर्धारित कर देता है। सबसे पहले शशि फिर बहन सरस्वती, फिर शारदा शांति और फिर शशि ओर शशि का निरंतर विस्तार। सरस्वती उसे बहनापा देती है और उसमें लिपटा हुआ सख्य और एक अनिर्वचनीय स्नेह । शारदा उसे किशोर जीवन की प्रथम रागानुभूति से कुरेदती है और उसे एक अपूर्व राग-सामर्थ्य के बोध तक ले जाती है, ओर पृथक हो जाती है । शांति मृत्यु की गोद में बैठी हुई है, किन्तु उसके भीतर जीवनानुभूति इस कदर समाई हुई हे कि वह शेखर को एक प्रशांत रागात्मकता से आवृत्त कर देती है । उसके संस्कार इतने गहरे हैं कि वह मिटते-मिटते भी शेखर के भीतर रागानुभूति को कुरेद जाती है। माँ उसके प्रति किसी क्षण में आविश्वास व्यक्त करती है जिसे वह ताड़ लेता है ओर इतना आहत अनुभव करता है कि सब कुछ छोड़कर निरुद्देश्य घर से निकलकर एक धुन में भागता हुआ न जाने कितनी दूर चला जाता है । भूख और प्यास के मारे निढाल पड़ जाता है| पूरी रात ठंडक में एक अनजान ...

'शेखर: एक जीवनी' का लिखा जाना हिन्दी उपन्यास में एक नया और सर्वथा अप्रत्याशित मोड़ था

अस्सी वर्ष ‘साहित्य का निर्माण,मानो जीवित मृत्यु का आह्वान है. साहित्यकार को निर्माण करके और लाभ भी तो क्या,रचयिता होने का सुख भी नहीं मिलता,क्योंकि काम पूरा होते ही वह देखता है, ‘अरे यह तो वह नहीं है जो मैं बनाना चाहता था,वह मानो क्रियाशीलता का नारद है,उसे कहीं रूकना नहीं है,उसे सर्वत्र भड़काना है,उभारना है,जलाना है और कभी शान्त नहीं होना है,कहीं रूकना नहीं है. शायद इसीलिए उसके पथ के आरम्भ में ही विधि उसे रोककर कहती है, ‘देख इस पथ पर मत जा,यह तेरे पैरों के लिए नहीं है.’और यदि वह ढीठ होकर बढ़ा ही जाता है,तो वह कहती है, ‘अच्छा,तो तू समझ-अपना ज़िम्मा संभाल.’और निर्मम अपने खाते से,अपने पोष्य और रक्षणीय बच्चों की सूची से उसका नाम काट देती है.’ यह उद्धरण अज्ञेय के पहले उपन्यास‘शेखर: एक जीवनी’में से है,उसके पहले भाग से जो आज से अस्सी बरस पहले प्रकाशित हुआ था,प्रेमचन्द के उपन्यास‘गोदान’के प्रकाशन के कुल पांच बरस बाद. अज्ञेय की उम्र तीस वर्ष थी. यह हिन्दी उपन्यास में एक नया और सर्वथा अप्रत्याशित मोड़ था. अगर आप हिन्दी के पांच कालजयी उपन्यासों की एक सूची बनायें तो उसमें‘गोदान’के साथ‘शेखर: एक जीवनी’भी अनिवार्यतः शामिल होगा. इस उपन्यास की शुरूआत भी अनोखी है. वह इस प्रकार है:‘फांसी! जिस जीवन को उत्पन्न करने में हमारे संसार की सारी शक्तियां,हमारे विकास,हमारे विज्ञान,हमारी सभ्यता द्वारा निर्मित सारी क्षमताएं या औजार असमर्थ हैं,उस जीवन को छीन लेने में,उसी का विनाश करने में,ऐसी भोली हृदयहीनता-फांसी!’इस कृति से हिन्दी उपन्यास को नयी वैचारिक सत्ता मिली और जैसा कि कवि कुंवर नारायण ने कहा है‘पिछले उपन्यासों से‘शेखर’इस अर्थ में भिन्न है कि उसमें व्यक्ति को भी उतनी ही बड़ी विचारणीय समस्या माना ...

शेखर एक जीवनी के रचयिता या रचनाकार

शेखर एक जीवनी के लेखक/रचयिता शेखर एक जीवनी (Shekhar Ek Jeevanee) के लेखक/रचयिता (Lekhak/Rachayitha) " अज्ञेय" ( Agyey) हैं। Shekhar Ek Jeevanee (Lekhak/Rachayitha) नीचे दी गई तालिका में शेखर एक जीवनी के लेखक/रचयिता को लेखक तथा रचना के रूप में अलग-अलग लिखा गया है। शेखर एक जीवनी के लेखक/रचयिता की सूची निम्न है:- रचना/रचना लेखक/रचयिता शेखर एक जीवनी अज्ञेय Shekhar Ek Jeevanee Agyey शेखर एक जीवनी किस विधा की रचना है? शेखर एक जीवनी (Shekhar Ek Jeevanee) की विधा का प्रकार " रचना" ( Rachna) है। आशा है कि आप " शेखर एक जीवनी नामक रचना के लेखक/रचयिता कौन?" के उत्तर से संतुष्ट हैं। यदि आपको शेखर एक जीवनी के लेखक/रचयिता के बारे में में कोई गलती मिली हो त उसे कमेन्ट के माध्यम से हमें अवगत अवश्य कराएं।

शेखर एक जीवनी विविध आयाम हिन्दी पुस्तक

शेखर एक जीवनी विविध आयाम हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shekhar Ek Jeevani Vividh Aayam Hindi Book इस पुस्तक का नाम है :शेखर एक जीवनी विविध आयाम | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉक्टर राम कमल राय | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अभिव्यक्ति प्रकाशन, प्रयागराज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 45 MB है | इस पुस्तक में कुल 127 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "शेखर एक जीवनी विविध आयाम" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं. Name of the book is : Shekhar Ek Jeevani Vividh Aayam | This book is written/edited by : Doctor Ram Kamal Ray | This book is published by : Abhivyakti Prakashan, Prayagraj | PDF file of this book is of size 45 MB approximately. This book has a total of 127 pages. Download link of the book "Shekhar Ek Jeevani Vividh Aayam" has been given further on this page from where you can download it for free. पुस्तक के संपादक पुस्तक की श्रेणी पुस्तक का साइज कुल पृष्ठ डॉ. राम कमल राय जीवनी 45 MB 127 पुस्तक से : इस प्रस्तुतीकरण में मेरी मुद्रा निश्चय ही एक क्षमाप्रार्थीकी मुद्रा है। बस इतना ही नहीं, बल्कि इसमें एक अपराधबोध भी है। क्योंकि मन में बार बार भीतरसे एक दुर्निवार पुकार भी उठी है कि पाठक से प्रार्थना की जाय कि वह इस पुस्तक के स्थान पर शेखर एक जीवनीको ही अच्छे से पढ़े। मैं नहीं समझता इस दृष्टिसे कभी उपन्यास के अंत को देखा गया हो, किन्तु यह एक आवश्यक संदर्भ है। शेखर अपना सारा सामर्थ्य शशि से ही प्राप्त करता है। इसलिए शेखरकी कहानी शशि की कहानी के बाद उसी प्राणवत्ता के साथ चलाई ही नहीं जा सकती थी...

शेखर एक जीवनी के प्रथम भाग का नाम क्या है?

रचनाकार अज्ञेय प्रकाशक नेशनल पब्लिशिंग हाउस वर्ष भाषा हिंदी विषय विधा पृष्ठ ISBN विविध इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर गद्य कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है। • शेखर: एक जीवनी / भाग 1 / भूमिका / अज्ञेय • शेखर: एक जीवनी / भाग 1 / प्रवेश / अज्ञेय • शेखर: एक जीवनी / भाग 1 / ऊषा और ईश्वर / अज्ञेय • शेखर: एक जीवनी / भाग 1 / बीज और अंकुर / अज्ञेय • शेखर: एक जीवनी / भाग 1 / प्रकृति और पुरुष / अज्ञेय • शेखर: एक जीवनी / भाग 1 / पुरुष और परिस्थिति / अज्ञेय शेखर एक जीवनी सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सयायन अज्ञेय का मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है। इसके दो भाग हैं। प्रथम भाग का प्रकाशन 1941 में तथा दूसरे भाग का प्रकाशन 1944 में हुआ। इसमें अज्ञेय ने बालमन पर पड़ने वाले काम, अहम और भय के प्रभाव तथा उसकी प्रकृति पर मनोवैज्ञानिक ढंग से विचार किया है। "https://hi.wikipedia.org/w/index.php?title=शेखर_एक_जीवनी&oldid=4561349" से प्राप्त शेखर एक जीवनी उपन्यास की समीक्षा शेखर एक जीवनी ‘सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी द्वारा रचित एक ‘मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास’ है , जिसे पूर्वदीप्ति (फ्लैशबैक) शैली में लिखा गया है, इस उपन्यास पर रोमाँ रोलाँ के ‘ज्यां क्रिस्ताफ’ का प्रभाव है । इसके दो भाग हैं । शेखर एक जीवनी उपन्यास के प्रथम भाग का नाम ‘उत्थान’ है और इसका रचनाकाल 1941 ई० है । दूसरे भाग का नाम ‘उत्कर्ष’ है जिसका रचनाकाल 1944 ई० है । इस उपन्यास के प्रथम भाग के भी चार (4) खंड हैं, जिनको विभाजित किया गया है – उषा और ईश्वर, बीज और अंकुर, प्रकृति और पुरुष तथ...

शेखर : एक जीवनी (उपन्यास) : अज्ञेय (हिंदी कहानी)

शेखर : एक जीवनी (भाग 1) : भूमिका वेदना में एक शक्ति है, जो दृष्टि देती है। जो यातना में है वह द्रष्टा हो सकता है। 'शेखर: एक जीवनी' जो मेरे दस वर्ष के परिश्रम का फल है-दस वर्षों में अभी कुछ देर है, लेकिन 'जीवनी' भी तो अभी पूरी नहीं हुई! घनीभूत वेदना की केवल एक रात में देखे हुए (Vision) को शब्दबद्ध करने का प्रयत्न है। आप इसे शेखी समझ सकते हैं। मेरे कहने का यह अभिप्राय नहीं है कि इतना बड़ा पोथा मैंने एक रात में गढ़ डाला। नहीं, आप मेरे एक-एक शब्द को फिर ध्यान से पढ़िए-'शेखर' घनीभूत वेदना की केवल एक रात में देखे हुए (Vision) को शब्दबद्ध करने का प्रयत्न है। सम्भव है, आप जानना चाहें, वह रात कैसी थी। किन्तु वैसी बातों का वर्णन शक्य नहीं होता, न उसका आपके लिए कोई प्रयोजन ही है। आपके लिए तो उसका यही वर्णन और यही महत्त्व हो सकता है कि उसमें मैंने यह Vision देखा था। वह रात मुझे उपलब्ध कैसे हुई, इसके सम्बन्ध में इतना बता सकता हूँ कि जब आधी रात को डाकुओं की तरह आकर पुलिस मुझे बन्दी बना ले गयी, और उसके तत्काल बाद पुलिस के उच्च अधिकारियों से मेरी बातचीत, फिर कहा-सुनी और फिर थोड़ी-सी मारपीट भी हो गयी, तब मुझे ऐसा दीखने लगा कि मेरे जीवन की इतिश्री शीघ्र होनेवाली है। फाँसी का पात्र मैं अपने को नहीं समझता था, न अब समझता हूँ, लेकिन उस समय की परिस्थिति और अपनी मनःस्थिति के कारण यह मुझे असम्भव नहीं लगा। बल्कि मुझे दृढ़ विश्वास हो गया कि यही भवितव्य मेरे सामने है। ऊपर मैंने कहा कि घोर यातना व्यक्ति को द्रष्टा बना देती है। यहाँ यह भी कहूँ कि घोर निराशा उसे अनासक्त बनाकर द्रष्टा होने के लिए तैयार करती है। मेरी स्थिति मानो भावानुभावों के घेरे से बाहर निकलकर एक समस्या-रूप में मेरे सामने आयी-अगर यही म...