नारायण साकार हरि कौन है

  1. Narayan realizes the glory of Hari
  2. Surdas ki Kavygat Vieshtayen
  3. सत्संग में नारायण साकार हरि का किया गुणगान
  4. विष्णु
  5. नर और नारायण कौन थे?
  6. विष्णु
  7. सत्संग में नारायण साकार हरि का किया गुणगान
  8. Narayan realizes the glory of Hari
  9. नर और नारायण कौन थे?
  10. Surdas ki Kavygat Vieshtayen


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Narayan realizes the glory of Hari

कोतवाली क्षेत्र के गांव जिगनिया में मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम का आयोजन हुआ, जिसमें भारी तादाद में श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने नारायण साकार हरि की महिमा का गुणगान किया। रविवार को आयोजित सत्संग में संतोष देवी, अंशु देवी ने नारायण साकार हरि की महिमा का गुणगान वंदना प्रार्थना के साथ किया। दूरदराज से आए श्रद्धालुओं ने भजन के माध्यम से नारायण साकार हरि की महिमा और सेवा कर्म का महत्व बताया। उदयपुर की बहन क्रांति देवी ने बताया कि सत्य के साथ आने से पहले बीमारियों से पीड़ित रहा करते थे। जब से सत्य का साथ किया है। उनकी सारी परेशानियां दूर हो गई । सराय पंजू के शिवम व ग्वाररू की बहन कामनी ने चेतावनी भजन सुनाया और नारायण साकार हरि का गुणगान किया। सोनकपुर की मिलक के ऋषि पाल सिंह ने कहा कि सत्य के साथ आने और वचन मानने से जीवन का कल्याण संभव है। इस दौरान मुख्य रूप से सरवन सिंह, महोबिया, परमवीर सिंह, सुधीर चौधरी और संजीव कुमार आदि सहित अनेक ने सहयोग दिया। कमेटी के अध्यक्ष मास्टर चेतन पाल सिंह ने साकार नारायण हरि की महिमा का गुणगान किया और सभी का आभार व्यक्त किया।

Surdas ki Kavygat Vieshtayen

सूरदास के काव्य में भाव योजना – सूरदास की भाव योजना के अन्तर्गत उनका शृंगार वर्णन, बाल वर्णन, भक्ति भावना और प्रकृति सौन्दर्य से संबंधित पद आते हैं। भक्ति काल में सूरदास ने शृंगार को रस राजस्व की सीमा तक पहुँचा दिया है। वे ऐसे कवियों में से हैं जिनके हृदय को सम्पूर्ण सत्ता शृंगार की गलियों में घूमती दिखलाई देती हैं। उनके शृंगार वर्णन की भक्तिपरक व्याख्या भी की गई है। संयोग और वियोग के जैसे आकर्षक चित्र सूरदास ने प्रस्तुत किये हैं वैसा अन्य कोई कवि नहीं कर सकता है। शृंगार के साथ ही उनका वात्सल्य वर्णन भी उच्च कोटि का है। उनका वात्सलय वर्णन मनोवैज्ञानिक और मार्मिक है। अपने बाल वर्णन में उन्होंने कृष्ण जन्म से लेकर उनके किशोर होने तक की विभिन्न स्थितियों का वर्णन किया है। कृष्ण की बाल लीलाएँ और बाल क्रीङाएँ सूरदास के काव्य का महत्त्वपूर्ण अंश है। सूरदास पुष्टि मार्ग के भक्त थे, उनकी भक्ति सखा भाव की है। सूरदास का काव्य ब्रज प्रदेश की सुन्दर प्रकृति के आकर्षक चित्रों से युक्त है। प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन रूपों की सुन्दर झाँकी सूरदास के काव्य में मिलती है। इस प्रकार भाव योजना की दृष्टि से सूरदास का काव्य पर्याप्त आकर्षक प्रभावशाली और उच्चकोटि का था। सूरदास के काव्य में भाषा (Surdas ki Kavya Bhasha) सूरदास के काव्य की भाषा ब्रज प्रदेश में बोली जाने वाली बोली है जिसे ब्रज भाषा कहते हैं। ब्रज प्रदेश के शब्दों के साथ उन्होंने अनेक प्रादेशिक संस्कृत के शब्दों का भी चयन किया है। यों भी ब्रजभाषा का सीधा सम्बन्ध संस्कृत से रहा है फिर सूरदास ने तो पाली, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी और फारसी तुर्की को भी अपने साहित्य में स्थान दिया है। वैसे भी सूरदास अपने शब्द विधान में एक विस्त...

सत्संग में नारायण साकार हरि का किया गुणगान

सत्संग में नारायण साकार हरि का किया गुणगान मानव सेवा समिति चन्दौसी के तत्वावधान में गांव पतरौआ में मानव मंगल मिशन सदभावना समागम कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ नारायण साकार हरि की वंदना प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में दूर दराज से आए मानव प्रेमी उपासकगुणों ने प्रभु परमात्मा नारायण साकार हरि का गुणगान वाणी व भजन के माध्यम से किया। तपेश ¨सह ने भजन के द्वारा संगत को मग्न मुग्ध कर दिया। कमेटी अध्यक्ष रमेशचंद्र ने बताया कि नारायण साकार हरि वह है जो न कभी जन्म लेते हैं। न मरते हैं हमेशा कायम रहते हैं। चन्दौसी: मानव सेवा समिति के तत्वावधान में गांव पतरौआ में मानव मंगल मिशन सदभावना समागम कार्यक्रम का शुभारंभ नारायण साकार हरि की वंदना प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में दूरदराज से आए मानव प्रेमी उपासक गुणों ने प्रभु परमात्मा नारायण साकार हरि का गुणगान वाणी व भजन के माध्यम से किया। तपेश ¨सह ने भजन के द्वारा संगत को मग्न मुग्ध कर दिया। कमेटी अध्यक्ष रमेशचंद्र ने बताया कि नारायण साकार हरि वह है जो न कभी जन्म लेते हैं। न मरते हैं हमेशा कायम रहते हैं। सत्य का साथ जो आज हम और आप कर रहे हैं। वह सब हमारे पूर्व जन्म के संस्कारों का प्रतिफल है। ¨नदा व चुगली सबसे बड़ा पाप है। रामपत ¨सह, रवि कुमार, सतेंद्र कुमार, वीरेंद्र कुमार, यशपाल, पप्पू ¨सह, विमल कुमार, रतन ¨सह, अशोक कुमार, जगतदेव, क्रांति देवी, सर्वेश देवी, गायत्री देवी, उदयभान आदि रहे। संचालन महीपाल ¨सह ने किया।

विष्णु

अनुक्रम • 1 शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ • 2 ऋग्वेद में विष्णु • 2.1 लोकत्रय के शास्ता: तीन पाद-प्रक्षेप • 2.2 विष्णु-धाम अर्थात् विष्णु का प्रिय आवास (वैकुण्ठ) • 2.3 विष्णु-इन्द्र युग्म अर्थात् इन्द्र-सखा • 2.4 परम वीर्यशाली • 2.5 कुत्सितों के लिए भयकारक • 2.6 व्यापक तथा अप्रतिहत गति वाले • 2.7 लोकोपकारक • 2.8 सर्जक-पालक-संहारक • 2.9 सर्वोच्चता • 3 ब्राह्मणों में विष्णु • 4 पौराणिक मान्यताएँ • 5 विष्णु का स्वरूप • 6 विष्णु-शिव एकता • 7 विष्णु के अवतार • 7.1 अवतार का प्रयोजन • 7.2 अवतारों की संख्या • 7.3 दशावतार • 7.4 अन्य अवतार • 8 108 नाम, महत्त्व और अर्थ • 9 इन्हें भी देखें • 10 सन्दर्भ • 11 बाहरी कड़ियाँ शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ [ ] 'विष्णु' शब्द की व्युत्पत्ति मुख्यतः 'विष्' धातु से ही मानी गयी है। ('विष्' या 'विश्' धातु लैटिन में - vicus और सालविक में vas -ves का सजातीय हो सकता है।) आदि शंकराचार्य ने भी अपने विष्णुसहस्रनाम-भाष्य में 'विष्णु' शब्द का अर्थ मुख्यतः व्यापक (व्यापनशील) ही माना है ऋग्वेद के प्रमुख भाष्यकारों ने भी प्रायः एक स्वर से 'विष्णु' शब्द का अर्थ व्यापक (व्यापनशील) ही किया है। विष्णुसूक्त (ऋग्वेद-1.154.1 एवं 3) की व्याख्या में आचार्य सायण 'विष्णु' का अर्थ व्यापनशील (देव) तथा सर्वव्यापक करते हैं; इस प्रकार सुस्पष्ट परिलक्षित होता है कि 'विष्णु' शब्द 'विष्' धातु से निष्पन्न है और उसका अर्थ व्यापनयुक्त (सर्वव्यापक) है। ऋग्वेद में विष्णु [ ] वैदिक देव-परम्परा में सूक्तों की सांख्यिक दृष्टि से विष्णु का स्थान गौण है क्योंकि उनका स्तवन मात्र 5 सूक्तों में किया गया है; लेकिन यदि सांख्यिक दृष्टि से न देखकर उनपर और पहलुओं से विचार किया जाय तो उनका महत्त्व बहुत ब...

नर और नारायण कौन थे?

परमेश्वर सदाशिव (शिव, शंकर, रुद्र या महेश नहीं) के तीन प्रकट रूपों में से प्रथम भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, उनमें से ही दो अवतार हैं- नर और नारायण। हम जिन्हें नारायण कहते हैं वे विष्णु के अवतार हैं। उनका भजन भी आपने सुना होगा- श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि। तेरी लीला सबसे न्यारी न्यारी, हरि हरि। अवतार का अर्थ किसी में विष्णु का अवतरण होना। भगवान राम भी विष्णु के अवतार थे लेकिन वे स्वयं विष्‍णु नहीं थे। वे भी ‍ब्रह्मा और वशिष्ठ की अनुशंसा पर विष्णु के अवतार घोषित किए गए थे। अर्थात राम एक माध्यम थे और विष्णु ने उनमें उतरकर लीला रची थी। अवतार का अर्थ किसी में किसी दूसरे का अवतरण होना। हालांकि कुछ अवतारों में विष्णु स्वयं प्रकट हैं। भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म की पत्नी रुचि के माध्यम से श्रीहरि विष्णु ने नर और नारायण नाम के दो ऋषियों के रूप में अवतार लिया। जन्म लेते ही वे बदरीवन में तपस्या करने के लिए चले गए। उसी बदरीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है। वहीं नर और नारायण नामक दो पहाड़ है। वहीं पास में केदारनाथ का पवित्र शिवलिंग है जिसे नर और नारायण ने मिलकर ही स्थापित किया था। यह लगभग 8 हजार ईसा पूर्व की बात है। एक बार नर और नारायण की तपस्या को देखकर देवराज इंद्र ने सोचा कि ये तप के द्वारा मेरे इंद्रासन को लेना चाहते हैं। ऐसे सोचकर इंद्र ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव, वसंत तथा अप्सराओं को भेजा। उन्होंने जाकर भगवान नर-नारायण को अपनी नाना प्रकार की कलाओं के द्वारा तपस्या भंग करने का प्रयास किया, किंतु उनके ऊपर कामदेव तथा उसके सहयोगियों का कोई प्रभाव न पड़ा। कामदेव, वसंत तथा अप्सराएं शाप के भय से थर-थर कांपने लगे। उनकी यह दशा देखकर भगवान नर और नारायण ने कहा, 'तुम लोग...

विष्णु

अनुक्रम • 1 शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ • 2 ऋग्वेद में विष्णु • 2.1 लोकत्रय के शास्ता: तीन पाद-प्रक्षेप • 2.2 विष्णु-धाम अर्थात् विष्णु का प्रिय आवास (वैकुण्ठ) • 2.3 विष्णु-इन्द्र युग्म अर्थात् इन्द्र-सखा • 2.4 परम वीर्यशाली • 2.5 कुत्सितों के लिए भयकारक • 2.6 व्यापक तथा अप्रतिहत गति वाले • 2.7 लोकोपकारक • 2.8 सर्जक-पालक-संहारक • 2.9 सर्वोच्चता • 3 ब्राह्मणों में विष्णु • 4 पौराणिक मान्यताएँ • 5 विष्णु का स्वरूप • 6 विष्णु-शिव एकता • 7 विष्णु के अवतार • 7.1 अवतार का प्रयोजन • 7.2 अवतारों की संख्या • 7.3 दशावतार • 7.4 अन्य अवतार • 8 108 नाम, महत्त्व और अर्थ • 9 इन्हें भी देखें • 10 सन्दर्भ • 11 बाहरी कड़ियाँ शब्द-व्युत्पत्ति और अर्थ [ ] 'विष्णु' शब्द की व्युत्पत्ति मुख्यतः 'विष्' धातु से ही मानी गयी है। ('विष्' या 'विश्' धातु लैटिन में - vicus और सालविक में vas -ves का सजातीय हो सकता है।) आदि शंकराचार्य ने भी अपने विष्णुसहस्रनाम-भाष्य में 'विष्णु' शब्द का अर्थ मुख्यतः व्यापक (व्यापनशील) ही माना है ऋग्वेद के प्रमुख भाष्यकारों ने भी प्रायः एक स्वर से 'विष्णु' शब्द का अर्थ व्यापक (व्यापनशील) ही किया है। विष्णुसूक्त (ऋग्वेद-1.154.1 एवं 3) की व्याख्या में आचार्य सायण 'विष्णु' का अर्थ व्यापनशील (देव) तथा सर्वव्यापक करते हैं; इस प्रकार सुस्पष्ट परिलक्षित होता है कि 'विष्णु' शब्द 'विष्' धातु से निष्पन्न है और उसका अर्थ व्यापनयुक्त (सर्वव्यापक) है। ऋग्वेद में विष्णु [ ] वैदिक देव-परम्परा में सूक्तों की सांख्यिक दृष्टि से विष्णु का स्थान गौण है क्योंकि उनका स्तवन मात्र 5 सूक्तों में किया गया है; लेकिन यदि सांख्यिक दृष्टि से न देखकर उनपर और पहलुओं से विचार किया जाय तो उनका महत्त्व बहुत ब...

सत्संग में नारायण साकार हरि का किया गुणगान

सत्संग में नारायण साकार हरि का किया गुणगान मानव सेवा समिति चन्दौसी के तत्वावधान में गांव पतरौआ में मानव मंगल मिशन सदभावना समागम कार्यक्रम का आयोजन हुआ। कार्यक्रम का शुभारंभ नारायण साकार हरि की वंदना प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में दूर दराज से आए मानव प्रेमी उपासकगुणों ने प्रभु परमात्मा नारायण साकार हरि का गुणगान वाणी व भजन के माध्यम से किया। तपेश ¨सह ने भजन के द्वारा संगत को मग्न मुग्ध कर दिया। कमेटी अध्यक्ष रमेशचंद्र ने बताया कि नारायण साकार हरि वह है जो न कभी जन्म लेते हैं। न मरते हैं हमेशा कायम रहते हैं। चन्दौसी: मानव सेवा समिति के तत्वावधान में गांव पतरौआ में मानव मंगल मिशन सदभावना समागम कार्यक्रम का शुभारंभ नारायण साकार हरि की वंदना प्रार्थना से हुआ। कार्यक्रम में दूरदराज से आए मानव प्रेमी उपासक गुणों ने प्रभु परमात्मा नारायण साकार हरि का गुणगान वाणी व भजन के माध्यम से किया। तपेश ¨सह ने भजन के द्वारा संगत को मग्न मुग्ध कर दिया। कमेटी अध्यक्ष रमेशचंद्र ने बताया कि नारायण साकार हरि वह है जो न कभी जन्म लेते हैं। न मरते हैं हमेशा कायम रहते हैं। सत्य का साथ जो आज हम और आप कर रहे हैं। वह सब हमारे पूर्व जन्म के संस्कारों का प्रतिफल है। ¨नदा व चुगली सबसे बड़ा पाप है। रामपत ¨सह, रवि कुमार, सतेंद्र कुमार, वीरेंद्र कुमार, यशपाल, पप्पू ¨सह, विमल कुमार, रतन ¨सह, अशोक कुमार, जगतदेव, क्रांति देवी, सर्वेश देवी, गायत्री देवी, उदयभान आदि रहे। संचालन महीपाल ¨सह ने किया।

Narayan realizes the glory of Hari

कोतवाली क्षेत्र के गांव जिगनिया में मानव मंगल मिलन सद्भावना समागम का आयोजन हुआ, जिसमें भारी तादाद में श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने नारायण साकार हरि की महिमा का गुणगान किया। रविवार को आयोजित सत्संग में संतोष देवी, अंशु देवी ने नारायण साकार हरि की महिमा का गुणगान वंदना प्रार्थना के साथ किया। दूरदराज से आए श्रद्धालुओं ने भजन के माध्यम से नारायण साकार हरि की महिमा और सेवा कर्म का महत्व बताया। उदयपुर की बहन क्रांति देवी ने बताया कि सत्य के साथ आने से पहले बीमारियों से पीड़ित रहा करते थे। जब से सत्य का साथ किया है। उनकी सारी परेशानियां दूर हो गई । सराय पंजू के शिवम व ग्वाररू की बहन कामनी ने चेतावनी भजन सुनाया और नारायण साकार हरि का गुणगान किया। सोनकपुर की मिलक के ऋषि पाल सिंह ने कहा कि सत्य के साथ आने और वचन मानने से जीवन का कल्याण संभव है। इस दौरान मुख्य रूप से सरवन सिंह, महोबिया, परमवीर सिंह, सुधीर चौधरी और संजीव कुमार आदि सहित अनेक ने सहयोग दिया। कमेटी के अध्यक्ष मास्टर चेतन पाल सिंह ने साकार नारायण हरि की महिमा का गुणगान किया और सभी का आभार व्यक्त किया।

नर और नारायण कौन थे?

परमेश्वर सदाशिव (शिव, शंकर, रुद्र या महेश नहीं) के तीन प्रकट रूपों में से प्रथम भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं, उनमें से ही दो अवतार हैं- नर और नारायण। हम जिन्हें नारायण कहते हैं वे विष्णु के अवतार हैं। उनका भजन भी आपने सुना होगा- श्रीमन नारायण नारायण हरि हरि। तेरी लीला सबसे न्यारी न्यारी, हरि हरि। अवतार का अर्थ किसी में विष्णु का अवतरण होना। भगवान राम भी विष्णु के अवतार थे लेकिन वे स्वयं विष्‍णु नहीं थे। वे भी ‍ब्रह्मा और वशिष्ठ की अनुशंसा पर विष्णु के अवतार घोषित किए गए थे। अर्थात राम एक माध्यम थे और विष्णु ने उनमें उतरकर लीला रची थी। अवतार का अर्थ किसी में किसी दूसरे का अवतरण होना। हालांकि कुछ अवतारों में विष्णु स्वयं प्रकट हैं। भगवान ब्रह्मा के पुत्र धर्म की पत्नी रुचि के माध्यम से श्रीहरि विष्णु ने नर और नारायण नाम के दो ऋषियों के रूप में अवतार लिया। जन्म लेते ही वे बदरीवन में तपस्या करने के लिए चले गए। उसी बदरीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है। वहीं नर और नारायण नामक दो पहाड़ है। वहीं पास में केदारनाथ का पवित्र शिवलिंग है जिसे नर और नारायण ने मिलकर ही स्थापित किया था। यह लगभग 8 हजार ईसा पूर्व की बात है। एक बार नर और नारायण की तपस्या को देखकर देवराज इंद्र ने सोचा कि ये तप के द्वारा मेरे इंद्रासन को लेना चाहते हैं। ऐसे सोचकर इंद्र ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव, वसंत तथा अप्सराओं को भेजा। उन्होंने जाकर भगवान नर-नारायण को अपनी नाना प्रकार की कलाओं के द्वारा तपस्या भंग करने का प्रयास किया, किंतु उनके ऊपर कामदेव तथा उसके सहयोगियों का कोई प्रभाव न पड़ा। कामदेव, वसंत तथा अप्सराएं शाप के भय से थर-थर कांपने लगे। उनकी यह दशा देखकर भगवान नर और नारायण ने कहा, 'तुम लोग...

Surdas ki Kavygat Vieshtayen

सूरदास के काव्य में भाव योजना – सूरदास की भाव योजना के अन्तर्गत उनका शृंगार वर्णन, बाल वर्णन, भक्ति भावना और प्रकृति सौन्दर्य से संबंधित पद आते हैं। भक्ति काल में सूरदास ने शृंगार को रस राजस्व की सीमा तक पहुँचा दिया है। वे ऐसे कवियों में से हैं जिनके हृदय को सम्पूर्ण सत्ता शृंगार की गलियों में घूमती दिखलाई देती हैं। उनके शृंगार वर्णन की भक्तिपरक व्याख्या भी की गई है। संयोग और वियोग के जैसे आकर्षक चित्र सूरदास ने प्रस्तुत किये हैं वैसा अन्य कोई कवि नहीं कर सकता है। शृंगार के साथ ही उनका वात्सल्य वर्णन भी उच्च कोटि का है। उनका वात्सलय वर्णन मनोवैज्ञानिक और मार्मिक है। अपने बाल वर्णन में उन्होंने कृष्ण जन्म से लेकर उनके किशोर होने तक की विभिन्न स्थितियों का वर्णन किया है। कृष्ण की बाल लीलाएँ और बाल क्रीङाएँ सूरदास के काव्य का महत्त्वपूर्ण अंश है। सूरदास पुष्टि मार्ग के भक्त थे, उनकी भक्ति सखा भाव की है। सूरदास का काव्य ब्रज प्रदेश की सुन्दर प्रकृति के आकर्षक चित्रों से युक्त है। प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन रूपों की सुन्दर झाँकी सूरदास के काव्य में मिलती है। इस प्रकार भाव योजना की दृष्टि से सूरदास का काव्य पर्याप्त आकर्षक प्रभावशाली और उच्चकोटि का था। सूरदास के काव्य में भाषा (Surdas ki Kavya Bhasha) सूरदास के काव्य की भाषा ब्रज प्रदेश में बोली जाने वाली बोली है जिसे ब्रज भाषा कहते हैं। ब्रज प्रदेश के शब्दों के साथ उन्होंने अनेक प्रादेशिक संस्कृत के शब्दों का भी चयन किया है। यों भी ब्रजभाषा का सीधा सम्बन्ध संस्कृत से रहा है फिर सूरदास ने तो पाली, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी और फारसी तुर्की को भी अपने साहित्य में स्थान दिया है। वैसे भी सूरदास अपने शब्द विधान में एक विस्त...