लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के गाने

  1. संगीतकार लक्ष्मीकांत
  2. "आ जान
  3. सदाबहार:'दो दिल मिल रहे हैं' से लेकर 'मेरे नसीब में तू है कि नहीं...', सुनिए आनंद बक्शी के ये सुपरहिट गाने
  4. Remembering Laxmikant : मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत को यूं आया 'बॉबी' के 'हम तुम एक कमरे में बंद हों...' गाने का आइडिया
  5. लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की पहली फिल्म
  6. जब हिंदी फिल्मों में पहली बार गाया गया था 'फीमेल डुएट'


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संगीतकार लक्ष्मीकांत

संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल :: ३५ साल की संगीतमय सफल यात्रा एक युग :: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल :: 1963 से 1998 तक। -हिंदी फिल्म संगीत के लिए अधिकतम लोकप्रिय/हिट गीतों की रचना की। -बिनाका गीतमाला में प्रभुत्व -7 फिल्मफेयर ट्राफियां - अधिकतम 25 नामांकन के साथ -35 फिल्में स्वर्ण जयंती के साथ -75 फिल्में रजत जयंती के साथ।—250 फ़िल्में हिट / सेमीहिट लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, बॉलीवुड के सबसे सफल संगीत निर्देशक। 503 फिल्में, 2845 गाने, 160 गायक और 72 गीतकार। हिंदी फिल्म संगीत में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का उत्कृष्ट योगदान। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आनंद बक्शी और लता मंगेशकर एक अनोखा एल्बम ।” लुटेरा”, 1965 लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, आनंद बक्शी और लता मंगेशकर का मंत्रमुग्ध करनेवाला संगीतमय तोहफा“लूटेरा” 1965 “लूटेरा”, एक बी ग्रेड, कम बजट वाली, बगैर स्टारकास्ट वाली फिल्म थी। लेकिन फिल्म का म्यूजिक A ग्रेड का था फिल्म की पूरी सफलता लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल मैजिकल म्यूजिक ने ली."लुटेरा", एक 'किंग-क्वीन' ड्रामा, 'दिवाली' के आसपास रिलीज़ हुई थी। फिल्म का निर्माण राजकुमार कोहली (उनकी पहली फिल्म) ने किया था, बाद में उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ कई म्यूजिकल हिट फिल्में बनाईं, "शर्त" 1969, "गोरा और काला" 1972, "नागिन" 1975, "जानी दुश्मन" 1978, “बीस साल बाद” १९८८, “पति पत्नी और तवायफ” १९९० इत्यादि। लेकिन “लूटेरा” को छोड़कर इन सभी फ़िलोंमें बड़े नामवाले कलाकार, अभिनेता / अभिनेत्री मौजूद है. , "लूटेरा" में दारा सिंह, निशि, हेलेन, पृ बिनाका गीतमाला फाइनल में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के गीतो की वर्षवार सूची / स्थिति साप्ताहिक उलटी गिनती कार्यक्रम जिसे" बिनाका गीतमाला" कहा जाता था अपने समय का सबसे लोकप्रिय औ...

"आ जान

“आ जान-ए-जां” 1969 की प्रसिद्ध फ़िल्म इंतकाम का गाना है। इसे सुरों से सजाया है लता मंगेशकर ने व संगीतबद्ध किया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने। राजेंद्र कृष्ण की क़लम ने जन्म दिया है इन ख़ूबसूरत शब्दों को। फ़िल्म में अशोक कुमार, राजेंद्र नाथ, साधना और हेलन ने महत्वपूर्ण भूमिकाएँ अदा की हैं। पढ़ें आ जान-ए-जां के बोल हिंदी में (Aa Jaan-e-jaan lyrics in Hindi)– “आ जान-ए-जां” लिरिक्स आ जान-ए-जां आ जान-ए-जां आ मेरा ये हुस्न जवां, जवां, जवां तेरे लिये है आस लगाये ओ ज़ालिम आ जाना न आ जान-ए-जां – २ ओ आँख से मस्ती टपके है, टपके है, तू देखे न दिल का सागर छलके है, छलके है, तू समझे न आ ल ल ल ल ल आ क्यों तड़पाये, तू क्यों तरसाये ओ ज़ालिम आ जाना न आ जान-ए-जां ओ दूर से कितनी आयी हूँ, आयी हूँ, तू जाने न प्यार का तोह्फ़ा लायी हूँ, लायी हूँ, तू माने न आ ल ल ल ल ल आ बे-दर्दी से, तू क्यों ठुकराये आ ज़ालिम आ जाना न आ जान-ए-जां गीत से जुड़े तथ्य फिल्म इंतक़ाम वर्ष 1969 गायक / गायिका लता मंगेशकर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल गीतकार राजेंद्र कृष्ण अभिनेता / अभिनेत्री अशोक कुमार, राजेंद्र नाथ, साधना, हेलन विदेशों में जा बसे बहुत से देशवासियों की मांग है कि हम आ जान-ए-जां गीत को देवनागरी हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेजी / रोमन में भी प्रस्तुत करें ताकि वे भी इस गाने को पढ़ सकें व आनंद ले सकें। पढ़ें Aa Jaan-e-jaan रोमन में- Aa Jaan-e-jaan Lyrics in Hindi ā jāna-e-jāṃ ā jāna-e-jāṃ ā merā ye husna javāṃ, javāṃ, javāṃ tere liye hai āsa lagāye o ज़ālima ā jānā na ā jāna-e-jāṃ – 2 o ā~kha se mastī ṭapake hai, ṭapake hai, tū dekhe na dila kā sāgara chalake hai, chalake hai, tū samajhe na ā la la la la la ā kyoṃ taड़pāye...

Zihal

Zihal-e-Miskin Makun Baranjish: संगीत साम्राज्ञी लता मंगेशकर के जितने भी फैंस होंगे उन्होंने उनका गाना 'जिहाल-ए -मिस्कीं मकुन बरंजिश' जरूर सुना होगा. 1985 में जेपी दत्त के निर्देशन में बनी फिल्म 'गुलामी' रिलीज हुई थी. फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, धर्मेंद्र, अनीता राज, नसीरुद्दीन शाह, रीना रॉय और स्मिता पाटिल महत्वपूर्ण भूमिकाओं में थे. उस फिल्म के इस मधुर गीत ने तुरंत फैंस का दिल जीत लिया. इस गाने को लता मंगेशकर और गायक शब्बीर कुमार ने उनका साथ दिया. गाने का म्यूजिक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया था. फिल्म 'गुलामी' के इस गाने को सुनकर एक अलग ही एहसास होता है. वास्तव में गुलजार ने इस सुंदर गीत की रचना की थी, जो साहित्य प्रेमियों के लिए एक अनुपम खजाना है. क्योंकि इस गाने का गहरा अर्थ है. जो बहुत से लोग नहीं जानते होंगे. गुलजार के लिखे इस गाने का मतलब भले ही फैन्स न समझें, लेकिन उन्होंने इस खूबसूरत गाने को अपने दिल में बसा लिया है. आइए जानते हैं इस दिल को छू लेने वाले गाने के मायने. अमीर खुसरों की मशहूर पंक्तियों से था प्रेरित गुलज़ार साहब ने यह गीत एक कविता की एक पंक्ति से प्रेरित होकर लिखा था. जो युगों युगों से लोगों के जेहन में बसी है. महान कवि अमीर खुसरो की एक प्रसिद्ध कृति है. उन्होंने इसकी रचना फारसी और ब्रजभाषा के मेल से की थी. अमीर खुसरो के लिखी कविता की पंक्तिया हैं - ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल, दुराये नैना बनाये बतियां... कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऐ जान, न लेहो काहे लगाये छतियां... मगर इस सुरम्य रचना का अर्थ क्या है? आइए उस पर एक नजर डालते हैं. इसका मतलब है, “आंखे फेरके और बातें बनाके मेरी बेबसी को नजरअंदाज (तगाफ़ुल) मत कर. हिज्र (जुदाई) की ताब (तपन) से जान नदारम (निकल र...

सदाबहार:'दो दिल मिल रहे हैं' से लेकर 'मेरे नसीब में तू है कि नहीं...', सुनिए आनंद बक्शी के ये सुपरहिट गाने

चार हजार गाने, 40 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकन और करीब चार दशकों तक सिनेमा पर संगीत का जादू बिखेरने वाले जादूगर आनंद आनंद बक्शी ने जो कलम से लिखा वो संगीत की दुनिया में सुनहरा इतिहास बनकर दर्ज हो गया। शमशाद बेगम, अलका याग्निक, मन्ना डे और कुमार सानू जैसे गायक आते- जाते रहे लेकिन शब्दों को संगीत में पिरोने वाले आनंद बक्शी हमेशा मैदान में खड़े रहे। आनंद आनंद बक्शी का जन्म 21 जुलाई साल 1930 में मौजूदा पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में हुआ था। जब मन कुछ ऐसा सुनने को करता है, जो दिल को छुए तो ऐसे में याद आते हैं आनंद बक्शी के गीत। गीतकार तो बहुत हुए हैं, लेकिन आनंद बक्शी के गीतों की खासियत उनकी सादगी ही रही। उनके गाने के बोल इतने सरल होते हैं कि आम आदमी की जुबान उन शब्दों के साथ पल भर में ही सहज महसूस करती है। हर गाने में एक फलसफा और फलसफे का अपना अलग अंदाज। यही वजह रही है कि उन्हें लोगों का भरपूर प्यार मिला। शब्दों के बाजीगर आनंद आनंद बक्शी की जन्म तिथि पर आज हम आपको उनके कुछ यादगार गीत सुनाते हैं। गीत : हम तुम एक कमरे में बंद हों फिल्म : बॉबी (1973) इस गीत में दो प्रेमियों की दिली ख्वाहिश को सटीक शब्दों में पिरोने का काम आनंद बक्शी से बेहतर शायद ही कोई कर सके। डिंपल कपाड़िया और ऋषि कपूर पर फिल्माए इस गीत को शैलेन्द्र सिंह और लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी है। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की प्रतिष्ठित जोड़ी के संगीत से सजे इस सदाबहार गीत के लिए आनंद बक्शी को फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामित किया गया। गीत : ओम शांति ओम फिल्म : कर्ज (1980) नौजवानों को पुरजोर से गाने पर मजबूर कर देने वाला ये गाना उस समय का होने पर भी आज के समय जैसा लगता है। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत से सजा ये गाना आ...

लक्ष्मीकांत

By Sep 2, 2022 क़रीब 500 फ़िल्मों में 3000 से ज़्यादा गानों का संगीत देने वालेलक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जब एक जोड़ी के रूप में फ़िल्मों से जुड़े तो लोग उन दोनों का असली नाम भूल गए और वो बस लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के नाम से ही पहचाने जाने लगे जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री मेंलक्ष्मी-प्यारे और LP के नाम से भी पुकारा जाता रहा। यूँ तो फ़िल्मों में बहुत सी जोड़ियां बनती हैं, हीरो हेरोइन की,गीतकार संगीतकार की, हीरो और गायक की मगर कभी न कभी ये जोड़ियाँटूट भी जाती हैं पर हैरत की बात है किसंगीतकारों की जोड़ियाँ हमेशा कामयाब रहीं, भले ही किसी वजह से उनमें दरार आई हो पर काम जोड़ी के रूप में ही करते रहे। हिंदी फ़िल्मों कीपहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल भगतराम से लेकर शंकर जयकिशन, या कल्याणजी आनंद जी हों या नए दौर के आनंद मिलिंद, साजिद वाजिद या शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी। इन्हें भी पढ़ें – ऐसी ही एक कामयाब जोड़ी रही लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की, जिनकीपहली ही फ़िल्म सुपर हिट रही। लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल दोनों का करियर एक साथ शुरु हुआ, उन्होंनेशादी भी कुछ ही दिनों के अंतराल पे की,बच्चे भी लगभग साथ ही साथ हुए, पहली कार भी दोनों ने एक साथ ख़रीदी लेकिन एक वक़्त आया था जब येजोड़ी लगभग टूटने ही वाली थी। उसके क़िस्से की बात करने से पहले दोनों के बारे में थोड़ा जान लेते हैं लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल दोनों की घरेलू परिस्थितियाँ लगभग एक जैसी थीं लक्ष्मीकांत लक्ष्मीकांत लक्ष्मीकांत शांताराम पाटिल कुडलकरका जन्म 1937 में 3 नवंबर को हुआ था। उस दिनलक्ष्मी-पूजा थी इसीलिए उनका नाम लक्ष्मीकांत रखा गया। उनके पिता की मृत्यु बचपन में ही हो गयी थी, इसीलिए उनका बचपन बहुत ग़रीबी में गुज़रा, यहाँ तक कि वो अपनी पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए। ...

Remembering Laxmikant : मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत को यूं आया 'बॉबी' के 'हम तुम एक कमरे में बंद हों...' गाने का आइडिया

Remembering Laxmikant : मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत को यूं आया ‘बॉबी’ के ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों…’ गाने का आइडिया Laxmikanth Death Anniversary : शायद आप ये बात नहीं जानते होंगे कि लक्ष्मीकांत ने पहली बार राज कपूर के साथ उनकी 1973 में आई फिल्म बॉबी में काम किया था. जी हां, ये सच है. जानिए लक्ष्मीकांत से जुड़ा किस्सा, उन्हीं की जुबानी... ‘मुझे तेरी मोहब्बत का सहारा मिल गया होता…’ जैसा आंखें नम कर देने वाला गाना हो या ‘रुक जाना नहीं तू कहीं हार के…’ जैसा ऊर्जा से भरा हुआ गीत, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की दिग्गज संगीतकार जोड़ी ने अपने हरेक गाने में एक इमोशन से भरा हुआ संगीत दिया. आज इस दिग्गज जोड़ी के लक्ष्मीकांत शांताराम कुडालकर (Laxmikant Shantaram Kudalkar) की पुण्यतिथि है. लक्ष्मीकांत का जन्म 3 नवंबर, 1937 में हुआ था. जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन लक्ष्मी पूजा यानी दीवाली थी. चूंकि, लक्ष्मी पूजन के दिन उनका जन्म हुआ तो उनके पिताजी ने उनका नाम लक्ष्मीकांत ही रख दिया. उन्होंने मुंबई के विर्ले पार्ले की झुग्गियों में अपना जीवन बिताया. वह एक बहुत ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे. तंगहाली में बीता लक्ष्मीकांत का बचपन लक्ष्मीकांत बहुत छोटे थे, जब उनके पिता का निधन हुआ. घर की माली हालत खराब थी, इसलिए वह अपनी तालीम भी पूरी नहीं कर पाए थे. उनके पिता के दोस्त एक संगीतकार थे, तो उन्होंने लक्ष्मीकांत को सलाह दी कि वो और उनके भाई संगीत की तालीम लें. इसके बाद लक्ष्मीकांत ने मंडोलिन बजाना सीखा और उनके भाई ने तबला. नामी मंडोलिन प्लेयर हुसैन अली के पास उन्होंने दो साल बिताए. इसके बाद लक्ष्मीकांत ने शुरुआत में म्यूजिक कॉन्सर्ट्स आयोजित करना शुरू किया, ताकि वो कुछ पैसे कमा सकें और घर का गुजर...

लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की पहली फिल्म

सही उत्तर : भक्त पुंडलिक आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने अपनी फिल्म कैरियर की शुरुआत एक बाल अभिनेता के रूप में हिंदी फिल्म भक्त पुंडलिक (1949) और आंखें (1950) फिल्म से की थी। ध्यान रहे की यह हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध संगीतकारों की जोड़ी है। इन्होंने बॉलीवुड को अनेक सफल गीत दिये हैं। इन्हें 'लक्ष्मी-प्यारे' (एल.पी. या LP) भी कहा जाता है। इन दोनों की जोड़ी को सात बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया। लेकिन साल 1998 में लक्ष्मीकांत की मृत्यु के साथ ही यह जोड़ी हमेशा के लिए टूट गईं। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के गाने (Laxmikant pyarelal songs) : यहाँ हम आपको निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के गानों (laxmikant pyarelal songs list) से अवगत करा रहे है, जिन्हें आप सुनकर आनंद ले सकते है... • वो जब याद आये बहुत याद आये (पारसमणि) • तुम गगन के चन्द्रमा हो, (सती सावित्री) • वो हैं जरा खफा-खफा (शागिर्द) • सावन का महीना पवन करे सोर (मिलन) • बदरा छाए कि झूले पड़ गए हाए (आया सावन झूम के) • ढल गया दिन हो गयी शाम (हमजोली) • जे हम तुम चोरी से बंधे इक डोरी से (धरती कहे पुकार के) • झिलमिल सितारों का आंगन होगा (जीवन-मृत्यु) • अच्छा तो हम चलते हैं (आन मिलो सजना) • ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं (इज्जत) • मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता (आप आये बहार आई) • महबूब मेरे तू है तो दुनिया कितनी हसीं है (पत्थर के सनम) • क्या कहता है ये सावन (मेरा गांव मेरा देश) • पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है, (एक नजर) • दिल की बातें दिल ही जाने, (रूप तेरा मस्ताना) • इक प्यार का नग़मा है (शोर) • मैं न भूलूंगा, मैं न भूलूंगी (रोटी कपड़ा...

जब हिंदी फिल्मों में पहली बार गाया गया था 'फीमेल डुएट'

यह वाकया कोलाबा के रेडियो क्लब में हुए एक कॉन्सर्ट का है जहां लता मंगेशकर परफॉर्म कर रही थीं. इस कॉन्सर्ट के दौरान उनकी नजर मैन्डोलिन बजाते हुए एक बहुत टैलेंटेड लड़के पर पड़ी. इस 10 साल के लड़के ने लता जी को मैन्डोलिन बजाने के अपने हुनर से इम्प्रेस कर दिया था. यह लड़का कोई और नहीं बल्कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी के लक्ष्मीकांत थे. उनका नाम देवी लक्ष्मी के नाम पर लक्ष्मीकांत रखा गया था क्योंकि उनका जन्म लक्ष्मी-पूजन के दिन हुआ था. वह बहुत छोटी उम्र में मैन्डोलिन बजाना सीखने लगे थे. उसके बाद उन्होंने एक बाल कलाकार के रूप में कुछ गुजराती फिल्मों और हिंदी फिल्मों जैसे 'पुंडलिक (1949)' और 'आंखें (1950)' में काम किया. फिल्म 'आंखें' का संगीत मदन मोहन ने दिया था. संगीत सीखने के दौरान ही लक्ष्मीकांत की मुलाकात अपने भविष्य के पार्टनर प्यारेलाल से सुरील कला केंद्र में हुई. यह केंद्र मंगेशकर परिवार द्वारा चलाया जाता था. संगीत और खेलों में रुचि ने लक्ष्मी-प्यारे की दोस्ती को और भी मजबूत बना दिया. लक्ष्मीकांत को मैन्डोलिन बजाने में महारथ थी तो प्यारेलाल एक बेहतरीन वायलिन वादक थे. दोनों ने साथ में संगीत की दुनिया में कदम रखा और कभी किसी के असिस्टेंट तो कभी सह- संगीतवादकों की तरह काम किया. संगीत के प्रति उनकी लगन की बदौलत साल 1963 में उन्हें संगीतकारों की तरह अपनी पहली फिल्म मिली. बाबुभाई मिस्त्री की कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्म 'पारसमणि' संगीतकार जोड़ी की तरह उनकी पहली फिल्म बनी. उन्होंने फिल्मी पर्दे पर इस फिल्म के साथ ऐसा कालजयी संगीत परोसा कि उन्हें उस दौर के महान संगीतकारों की कतार में शुमार कर दिया गया. 'पारसमणि' का संगीत हिंदी फिल्म संगीतप्रेमियों के लिए अमृत जैसा था. इसके बाद इस जोड़ी ने ...