ज़म ज़म इलेक्ट्रॉनिक्स

  1. आब ए ज़म ज़म !! Part 2
  2. खिला मेरे दिल की कली ग़ौस
  3. ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस


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आब ए ज़म ज़म !! Part 2

!! आब-ए-जमजम से मोरक्को के महिला की एक इबरतनाक हकीकत !! लैला अल हेल्व खुद बता रही है अपनी स्टोरी – नौ साल पहले मुझे मालूम हुआ कि मुझे कैंसर है। सभी जानते है कि इस बीमारी का नाम ही कितना डरावना है और मोरक्को में हम इसे राक्षसी बीमारी के नाम से जानते हैं। अल्लाह पर मेरा यकीन बेहद कमजोर था। मैं अल्लाह की याद से पूरी तरह से गाफिल रहती थी। मैंने सोचा भी नहीं था कि कैंसर जैसी भयंकर बीमारी की चपेट में आ जाऊंगी। मालूम होने पर मुझे गहरा सदमा लगा। मैंने सोचा दुनिया में कौनसी जगह मेरी इस बीमारी का इलाज हो सकता है? मुझे कहां जाना चाहिए? मैं निराश हो गई। मेरे दिमाग में खुदकुशी का खयाल आया लेकिन….. मैं अपने शौहर और बच्चों को बेहद चाहती थी। उस वक्त मेरे दिमाग में यह नहीं था कि अगर मैंने खुदकुशी की तो अल्लाह मुझे सजा देगा। जैसा कि पहले मैंने बताया अल्लाह की याद से मैं गाफिल ही रहती थी। शायद मैं बेल्जियम गई और वहां मैंने कई डॉक्टरों को दिखाया। उन्होंने मेरे पति को बताया कि पहले मेरे स्तनों को हटाना पड़ेगा, उसके बाद बीमारी का इलाज शुरू होगा। मैं जानती थी कि इस चिकित्सा पद्धति से मेरे बाल उड़ जाएंगे। मेरी भौंहें और पलकों के बाल जाते रहेंगे और चेहरे पर बाल उग जाएंगे। मैं ऐसी जिंदगी के लिए तैयार नहीं थी। मैंने डॉक्टर को इस तरह के इलाज के लिए साफ इंकार कर दिया और कहा कि किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति से मेरा इलाज किया जाए जिसका मेरे बदन पर किसी तरह का दुष्प्रभाव ना हो। डॉक्टर ने दूसरा तरीका ही अपनाया। मुझ पर इस इलाज का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ। मैं बहुत खुश थी। मैं मोरक्को लौट आई और यह दवा लेती रही। मुझे लगा शायद डॉक्टर गलत समझ बैठे और मुझे कैंसर है ही नहीं। तकरीबन छह महीने बाद मेरा वजन तेजी से गिरन...

खिला मेरे दिल की कली ग़ौस

खिला मेरे दिल की कली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मिटा क़ल्ब की बे-कली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मेरे चाँद ! मैं सदक़े, आजा इधर भी चमक उठे दिल की गली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! तेरे रब ने मालिक किया तेरे जद को तेरे घर से दुनिया पली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! वो है कौन ऐसा नहीं जिस ने पाया तेरे दर पे दुनिया ढली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! कहा जिस ने 'या ग़ौस अग़िसनी' तो दम में हर आई मुसीबत टली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! नहीं कोई भी ऐसा फ़रियादी, आक़ा ! ख़बर जिस की तुम ने न ली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मेरी रोज़ी मुझ को 'अता कर दो, आक़ा ! तेरे दर से दुनिया ने ली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! न माँगूँ मैं तुम से तो फिर किस से माँगूँ ? कहीं और भी है चली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! सदा गर यहाँ मैं न दूँ तो कहाँ दूँ ? कोई और भी है गली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! जो क़िस्मत हो मेरी बुरी, अच्छी कर दो जो 'आदत हो बद, कर भली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! तेरा मर्तबा आ'ला क्यूँ हो न, मौला ! तू है इब्न-ए-मौला-'अली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! क़दम गर्दन-ए-औलिया पर है तेरा तू है रब का ऐसा वली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! जो डूबी थी कश्ती वो दम में निकाली तुझे ऐसी क़ुदरत मिली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! हमारा भी बेड़ा लगा दो किनारे तुम्हें ना-ख़ुदाई मिली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! तबाही से नाओ हमारी बचा दो हवा-ए-मुख़ालिफ़ चली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! तुझे तेरे जद से, उन्हें तेरे रब से है 'इल्म-ए-ख़फ़ी-ओ-जली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मेरा हाल तुझ पर है ज़ाहिर कि पुतली तेरी लौह से जा मिली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! ख़ुदा ही के जल्वे नज़र आए जब भी तेरी चश्म-ए-हक़-बीं खुली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! फ़िदा तुम पे हो जाए नूरी -ए-मुज़्तर ये है इस की ख़्वाहिश-दिली, ग़ौसे-आ'ज़म ! शायर: मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान नूरी ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी khila mere dil ki kali, Gaus-e-aa'zam ! miTa qalb ki be-kali, Gaus-e-aa'zam ! mere chaand ! mai.n sadqe, aaja idhar bhi chamak uThe dil ki gali,...

Ghous

By Dec 26, 2022 Ghous-e-Azam Jilani Naat Lyrics Ghous-e-Azam Jilani | Hain Mehboob-e-Subhani Ghous-e-Azam Jilani Naat Lyrics ग़ौस पिया मेरे ग़ौस पिया ! ग़ौस पिया मेरे ग़ौस पिया ! ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी हैं महबूब-ए-सुब्हानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी पीर हैं बेशक ला-सानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी हसनी सय्यिद इन के पिदर और हुसैनी हैं मादर दोनों तरफ़ से है इन का आ’ला रुत्बा, आ’ला घर दादा हैं इन के हैदर, ये सब वलियों के सरवर निस्बत में हैं ला-फ़ानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी कहता था रब्ब-ए-अकबर, इन की ज़ुबाँ बन के अक्सर वर्ना इन की महफ़िल में माइक थे ना स्पीकर सुनते थे लाखों इंसाँ, पढ़ के सुनाते थे जी हाँ जब आयात-ए-क़ुरआनी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी जिस पे नज़र कर देते हैं, ख़ाली को भर देते हैं चोरों को भी दम भर में रब का वली कर देते हैं जो इन के हो जाते हैं, दुनिया पर छा जाते हैं करते हैं यूँ सुल्तानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी जैसे हो माह-ए-मुबीं, ऐसी है पुर-नूर जबीं देखा ना होगा दुनिया ने ऐसा जमील और ऐसा हसीं हैदर की तस्वीर हैं ये, सब पीरों के पीर हैं ये हैं महबूब-ए-सुब्हानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी, ग़ौस-ए-आ’ज़म जीलानी इस के हामी रब के शेर, इस बेड़े की ख़ैर ही ख़ैर ‘अक्स भी इक इस का शा’इर और सना-ख़्वाँ इस के ढेर फ़ज़्ल-ओ-करम का रेला है, ये तो क़ादरी...

ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस

ख़ुदा के फ़ज़्ल से हम पर है साया ग़ौस-ए-आ'ज़म का हमें दोनों जहाँ में है सहारा ग़ौस-ए-आ'ज़म का 'मुरीदी ला-तख़फ़' कह कर तसल्ली दी ग़ुलामों को क़यामत तक रहे बे-ख़ौफ बंदा ग़ौस-ए-आ'ज़म का हमारी लाज किस के हाथ है ! बग़दाद वाले के मुसीबत टाल देना काम किस का ! ग़ौस-ए-आ'ज़म का गए इक वक़्त में सत्तर मुरीदों के यहाँ हज़रत समझ में आ नहीं सकता मु'अम्मा ग़ौस-ए-आ'ज़म का मुहम्मद का रसूलों में है जैसे मर्तबा आ'ला है अफ़ज़ल औलिया में यूँ ही रुत्बा ग़ौस-ए-आ'ज़म का 'अज़ीज़ो ! कर चुको तय्यार जब मेरे जनाज़े को तो लिख देना कफ़न पर नाम-ए-वाला ग़ौस-ए-आ'ज़म का लहद में जब फ़रिश्ते मुझ से पूछेंगे तो कह दूँगा तरीक़ा क़ादरी हूँ, नाम लेवा ग़ौस-ए-आ'ज़म का निदा देगा मुनादी हश्र में यूँ क़ादरियों को किधर हैं क़ादरी ? कर लें नज़ारा ग़ौस-ए-आ'ज़म का निदा देगा मुनादी हश्र में यूँ क़ादरियों को कहाँ हैं क़ादरी ? कर लें नज़ारा ग़ौस-ए-आ'ज़म का फ़रिश्तो ! रोकते क्यूँ हो मुझे जन्नत में जाने से ये देखो हाथ में दामन है किस का ! ग़ौस-ए-आ'ज़म का जनाब-ए-ग़ौस दूल्हा और बराती औलिया होंगे मज़ा दिखलाएगा महशर में सेहरा ग़ौस-ए-आ'ज़म का मुख़ालिफ़ क्या करे मेरा कि है बे-हद करम मुझ पर ख़ुदा का, रहमतुल-लिल-'आलमीं का, ग़ौस-ए-आ'ज़म का कभी क़दमों पे लौटूँगा, कभी दामन पे मचलूँगा बता दूँगा कि यूँ छुटता है बंदा ग़ौस-ए-आ'ज़म का जमील-ए-क़ादरी ! सौ जाँ से हो क़ुर्बान मुर्शिद पर बनाया जिस ने तुझ जैसे को बंदा ग़ौस-ए-आ'ज़म का शायर: मौलाना जमील-उर-रहमान क़ादरी ना'त-ख़्वाँ: ओवैस रज़ा क़ादरी असद रज़ा अत्तारी हाफ़िज़ अहसन क़ादरी KHuda ke fazl se ham par hai saaya Gaus-e-aa'zam ka hame.n dono.n jahaa.n me.n hai sahaara Gaus-e-aa'zam ka 'mureedi laa-taKHaf' keh kar tasalli di Gulaamo.n ko qayaamat tak rahe be-KHauf band...