गंगा मंत्र इन संस्कृत

  1. श्री गंगा जी का पावन मंत्र और स्तुति 10 बार पढ़़कर देखिए, मैया का सुंदर स्वरूप आंखों के सामने आ जाएगा...
  2. नदी पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  3. गणेश जी के सभी संस्कृत श्लोक
  4. Ganga Mantra
  5. कर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  6. उपद्रव नाशक (गंगा) मन्त्र
  7. श्री गंगा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित


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श्री गंगा जी का पावन मंत्र और स्तुति 10 बार पढ़़कर देखिए, मैया का सुंदर स्वरूप आंखों के सामने आ जाएगा...

आप मुक्ता मणियों से विभूषित है, सौम्य है, अयुत चंद्रमाओं की प्रभा के समान सुख देने वाली हैं, जिस पर चामर डुलाए जा रहे हैं, श्वेत छत्र से भली भांति शोभित है, आप अत्यंत प्रसन्न हैं, वर देने वाली हैं, निरंतर करुणार्द्रचित्त है, भूपृष्ठ को अमृत से प्लावित कर रही हैं, दिव्य गंध लगाए हुए हैं, त्रिलोकी से पूजित हैं, सब देवों से अधिष्ठित हैं, दिव्य रत्नों से विभूषित हैं, दिव्य ही माल्य और अनुलेपन हैं, ऐसी गंगा मां के पानी में ध्यान करके भक्तिपूर्व मंत्र से अर्चना कर रहा/रही हूं ।

नदी पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

हिंदी अर्थ:- हे पतितजनों का उद्धार करने वाली जह्नुकुमारी गंगे| तुम्हारी तरंगे गिरिराज हिमालय को खण्डित करके बहती हुई सुशोभित होती है| तुम भीष्म की जननी और जह्नुमुनिकी कन्या हो, पतितपावनी होने के कारण तुम त्रिभुवन में धन्य हो । निरोगी होना परम भाग्य है और स्वास्थ्य से अन्य सभी कार्य सिद्ध होते हैं । यत्र गंगा महाराज स देशस्तत् तपोवनम्। सिद्धिक्षेत्र च तज्ज्ञेयं गंगातीर समाश्रितम्।। हिंदी अर्थ:- मां गंगा पृथ्वी पर मनुष्यों को तारती है पाताल में नागों को और पृथिवी पर मनुष्यों को तारती है, इसी के कारण इसको त्रिपथगा कहा जाता है क्षितौ तारयते मान् नागास्तारयतेऽप्यधः। दिवि तारयते देवास्तेन त्रिपथगा स्मृता।। हिंदी अर्थ:- वाल्मीकि रामायण में भी गंगा नदी के जल को परम पवित्र तथा समस्त प्राणियों के पाप का नाश करने वाला बताया गया है | जिसमे कहा गया है कि, विष्णु के चरणों से उत्पन्न, श्री शंकर के सिर पर विराजमान, तथा संपूर्ण पापों को हरने वाला गंगाजल मुझको पवित्र कर दे जो व्यक्ति मां गंगा के नाम का उच्चारण करते हुए कुएं के जल से स्नान करता है उसको गंगा नदी (Ganga River) में स्नान करने वाले व्यक्ति के बराबर पुण्य प्राप्त होता है गंगे! च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि! जलेSस्मिन् सन्निधिं कुरु।। हिंदी अर्थ:- अर्थात् हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी नदियों ! (मेरे स्नान करने के) इस जल में (आप सभी) पधारिये । एक अन्य श्लोक भी बहुधा स्नान करते समय बोला जाता है, जो इस प्रकार है । दर्शनात्स्पर्शनात्पानात्तथा गंगेतिकीर्तिनात्। पुनाति पुण्यं पुरूषाशतशोऽथ सहस्रशः।। हिंदी अर्थ:- जन्म जन्मांतरों से अर्जित पाप चाहे अधिक हों या कम हों, भागीरथी माँ गंगा के प्र...

गणेश जी के सभी संस्कृत श्लोक

यतो बुद्धिरज्ञाननाशो मुमुक्षोः यतः सम्पदो भक्तसन्तोषिकाः स्युः। यतो विघ्ननाशो यतः कार्यसिद्धिः सदा तं गणेशं नमामो भजामः।। भावार्थ: उनकी कृपा से मोक्ष की इच्छा रखने वालों की अज्ञानी बुद्धि नष्ट हो जाती है, जिससे भक्तों को संतुष्टि का धन प्राप्त होता है, जिससे विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और कार्य में सफलता मिलती है, ऐसे गणेश जी को हम सदा प्रणाम करते हैं। हाँ, वे उसकी पूजा करते हैं। मूषिकवाहन् मोदकहस्त चामरकर्ण विलम्बित सूत्र। वामनरूप महेश्वरपुत्र विघ्नविनायक पाद नमस्ते।। भावार्थ: हे भगवान, जिनका वाहन चूहा है, जिनके हाथों में मोदक (लड्डू) हैं, जिनके कान बड़े पंखों की तरह हैं, और जिन्होंने पवित्र धागा पहना हुआ है। जिनका रूप छोटा है और जो महेश्वर के पुत्र हैं, जो सभी विघ्नों का नाश करने वाले हैं, मैं आपके चरणों में नतमस्तक हूं। नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च।। भावार्थ: मैं भगवान गजानन की पूजा करता हूं, जो सभी इच्छाओं के पूर्तिकर्ता हैं, जो सोने की चमक से चमकते हैं और सूर्य की तरह तेज हैं, एक सर्प की बलि का पर्दा पहनते हैं, एक दांत वाले, सीधे और कमल के आसन पर विराजमान हैं। विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं। नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।। भावार्थ: वरदान दाता विघ्नेश्वर, देवताओं के प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से परिपूर्ण, जगत् के हितैषी, दृष्टि, वेदों और यज्ञों से सुशोभित पार्वती के पुत्र को नमस्कार; हे गिनती! बधाई हो। गणेश जी श्लोक इन संस्कृत (Ganesh Shlok) प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुगमम् उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्॥ ...

Ganga Mantra

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कर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतु र्भूर्मा ते संगोस्त्वकर्मणि ।। हिंदी अर्थ: भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है। कर्म के फल का अधिकार तेरे पास नहीं है। इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और न ही कर्म न करने के भाव मन में ला। अतः कर्म कर फल की चिंता मत कर सर्वे कर्मवशा वयम्। न श्वः श्वमुपासीत। को ही मनुष्यस्य श्वो वेद। हिंदी अर्थ:- कल के भरोसे मत बैठो। कर्म करो, मनुष्य का कल किसे ज्ञात है? अकर्मा दस्युः। हिंदी अर्थ:- कर्महीन मनुष्य दुराचारी है। अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च। स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुरा कृतम्। हिंदी अर्थ: – जैसे फूल और फल बिना किसी प्रेरणा से स्वतः समय पर उग जाते हैं, और समय का अतिक्रमण नहीं करते, उसी प्रकार पहले किये हुए कर्म भी यथासमय ही अपने फल (अच्छे या बुरे) देते हैं। अर्थात कर्मों का फल अनिवार्य रूप से मिलता है। कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। हिंदी अर्थ:- अकर्म कि अपेक्षा कर्म श्रेष्ठ होता है। दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्। हिंदी अर्थ:- दिनभर ऐसा कार्य करो जिससे रात में चैन की नींद आ सके। ज्ञेय: स नित्यसंन्न्यासी यो न द्वेष्टि न काङ् क्षति | निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते || हिंदी अर्थ:- जो पुरुष न तो कर्मफलों से घृणा करता है और न कर्मफल की इच्छा करता है, वह नित्य संन्यासी जाना जाता है। हे महाबाहु अर्जुन! मनुष्य समस्त द्वन्दों से रहित होकर भवबंधन को पार कर पूर्णतया मुक्त्त हो जाता है। योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रिय: | सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते || हिंदी अर्थ:- जो भक्तिभाव से कर्म करता है, जो विशुद्ध आत्मा है और अपने मन तथा, इन्...

उपद्रव नाशक (गंगा) मन्त्र

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श्री गंगा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

श्री गंगा स्तोत्र पुण्यसलिला माता गंगा को समर्पित एक स्तोत्र है, इसकी रचना आदिगुरु जो भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है उसके सभी प्रकार के रोग, शोक, पाप, ताप का नाश हो जाता है और वह सब प्रकार से सुखी हो जाता है। ॥ श्री गंगा स्तोत्र ॥ देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे । शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1॥ अर्थ – हे देवि गंगे ! तुम देवगण की ईश्वरी हो, हे भगवति ! तुम त्रिभुवन को तारनेवाली, विमल और तरल तरंगमयी तथा शंकर के मस्तक पर विहार करनेवाली हो। हे माता ! तुम्हारे चरण कमलों में मेरी मति लगी रहे। भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः । नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥2॥ अर्थ – हे भागीरथि ! तुम सब प्राणियों को सुख देती हो, हे माता ! वेद और शास्त्र में तुम्हारे जल का माहात्म्य वर्णित है, मैं तुम्हारी महिमा कुछ नहीं जानता, हे दयामयि ! मुझ अज्ञानी की रक्षा करो। हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे । दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥3॥ अर्थ – हे गंगे ! तुम श्रीहरि के चरणों की चरणोदकमयी नदी हो, हे देवि ! तुम्हारी तरंगें हिम, चन्द्रमा और मोती की भाँति श्वेत हैं, तुम मेरे पापों का भार दूर कर दो और कृपा करके मुझे भवसागर के पार उतारो। तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् । मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥4॥ अर्थ – हे देवि ! जिसने तुम्हारा जल पी लिया, अवश्य ही उसने परमपद पा लिया, हे माता गंगे ! जो तुम्हारी भक्ति करता है, उसको यमराज नहीं देख सकता अर्थात तुम्हारे भक्तगण यमपुरी में न जाकर वैकुण्ठ में जाते हैं। पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे । भीष्मजननि हे मुनि...