- जीवन का अर्थ, परिभाषा एवं लक्षण
- दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने वाले स्वर्ण सूत्र
- जीवन का अर्थ क्या है?
- दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त कीजिए
- दाम्पत्य और असंतोषः एक कहानी तस्वीरों की ज़ुबानी
- Dampatya Jeewan mein Madhurta
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जीवन का अर्थ, परिभाषा एवं लक्षण
जीवन शब्द ‘जीव’ शब्द के साथ ‘ल्युट’ प्रत्यय लगाने से बना है। जीवन का अर्थ है जीवनम् अर्थात् जिन्दा रहना। इसे जन्म से मृत्यु तक का समय अथवा जिंदगी भी कहा जाता है।‘जीवन’ शब्द का अर्थ है जीता रहना, प्राण धारण करना, जीवित दशा, जिंदगी, जीवन की आधार रूप वस्तु।’ समय तथा समाज के परिवर्तन के साथ-साथ ‘जीवन’ शब्द का अर्थ भी बदलता रहता है। प्रारंभ में‘जीवन’ को मात्रा अस्तित्व समझा जाता था। मनुष्य के सांस्कृतिक विकास के लिए साथ-साथ जीवन का क्षेत्र भी विस्तृत होता गया। जीवन की परिभाषा हिन्दी विद्वानों के अनुसार-’जीवन वह नैसर्गिक शक्ति है जो प्राणियों, वृक्षों आदि की अंगों, उपांगों से युक्त करके सक्रिय और सचेष्ट बनाती है और जिसके फलस्वरूप वे अपना भरण-पोषण करते हुए अपने वंश की वृद्धि करते हैं। आत्मा या प्राणों से पिण्ड या शरीर से युक्त रहने की दशा या भाव, जान अथवा प्राण आदि को ही‘जीवन’ का नाम दिया गया है। जीवन के पाँच लक्षण माने गए हैं-गतिशीलता, अनुभूति या संवेदना, आत्मवर्धन, आत्मपोषण और प्रजनन। जब तक भौतिक तत्त्वों से बने हुए पिण्ड या शरीर में आत्मा या प्राण रहते हैं, तब तक वह चेतन और जीवित रहता है। इसकी विपरीत दिशा में वह नष्ट हो जाता है। जिन पदार्थों में आत्मा या प्राण होते ही नहीं, वे अचेतन और निर्जीव कहलाते हैं। यह दशा जड़ता अथवा मृत्यु की दशा है। इसमें शरीर के साथ प्राणों का आधार रहता है। इसी तरह इसे जीवित रहने का भाव अथवा जीने का व्यापार भी कहा जाता है। वास्तव में‘जीवन’ एक ऐसा शब्द है जिसे समझने का प्रयत्न किया जा सकता है, परन्तु जिस तरह अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति कठिन है, वैसे ही जीवन को समझ पाना इतना सरल नहीं है।
दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने वाले स्वर्ण सूत्र
वैवाहिक जीवन में आर्थिक और सामाजिक कारण अवश्य होते हैं। किन्तु प्रधान कारण मनोवैज्ञानिक होते हैं। पति-पत्नी में अनेक अज्ञात भावनाएं प्रसुप्त इच्छाएं पुराने संस्कार, कल्पनाएं होती हैं। जो अप्रकट रूप से प्रकाशित हो जाती है। प्रायः दो प्रेमी प्रसन्नता से वैवाहिक सूत्र में आबद्ध होते हुए देखे गए हैं। किन्तु विवाह के कुछ काल पश्चात उनका पारस्परिक आकर्षण न्यून होता देखा जाता है। बाद में तो वे परस्पर घृणा तक करने लगते हैं। इस घृणा के कारण प्रायः आन्तरिक होते हैं। इसका प्रधान कारण मनुष्य की उभयलिंगता है। जिसका अभिप्राय यह है कि हर एक पुरुष में स्त्रीत्व का अंश विद्यमान है तथा हर स्त्री में पुरुषत्व का। बड़े होने पर किन तत्वों की प्रधानता हो जायेगी। इस मनोवैज्ञानिक आधार पर स्त्री-पुरुष का मेल निर्भर है। यदि संयोगवश ऐसे दो प्राणी वैवाहिक सूत्र में आबद्ध हो गये हैं, जिनमें एक ही लिंग की प्रधानता है-जैसे स्त्री में पुरुषत्व और पुरुष में भी पुरुषत्व के गुण बढ़े हुए हैं अथवा स्त्री में तो स्त्रीत्व है ही, उसके पति में भी स्त्री-तत्व की प्रधानता है, तो वैवाहिक जोड़े में साम्य, सुख, समृद्धि और आन्तरिक संतुलन उचित न रहेगा। वास्तव में दाम्पत्य जीवन का वास्तविक सुख तभी प्राप्त हो सकता है जब स्त्री में स्त्रीत्व के गुणों का, तथा पुरुषों में पुरुषोचित गुणों का स्वाभाविक और अबोध विकास हो। इसका अभिप्राय यह नहीं कि उनमें विपरीत गुण बिलकुल ही न हों। इसका आशय केवल इतना ही है कि पुरुष में पुरुषत्व की प्रधानता हो, और स्त्री में स्त्रीत्व की प्रधानता हो। पुरुष में स्त्रीत्व के गुण केवल गौण रूप से, और स्त्री में पुरुषत्व के गुण गौण रूप से रह सकते हैं। पुरुषत्व के गुण- पुरुष का प्रधान गुण है पौरुष (अर्थ...
जीवन का अर्थ क्या है?
उत्तर जीवन का अर्थ क्या है? मैं जीवन में उद्देश्य, पूर्णता तथा सन्तुष्टि कैसे खोज सकता हूँ? क्या मैं किसी बात के चिरस्थायी महत्व की प्राप्ति कर सकता हूँ? बहुत सारे लोगों ने इन महत्वपूर्ण प्रश्नों के ऊपर सोचना कभी नहीं छोड़ा है। वे सालों पीछे मुड़कर देखते हैं और आश्चर्य करते हैं कि उनके सम्बन्ध क्यों नहीं टूटे और वे इतना ज्यादा खालीपन का अहसास क्यों करते हैं, हालाँकि उन्होंने वह सब कुछ पा लिया जिसको पाने के लिए वे निकले थे। एक खिलाड़ी जो बेसबाल के खेल में बहुत अधिक ख्याति के शिखर पर पहुँच चुका था, से पूछा गया कि जब उसने शुरू में बेसबाल खेलना आरम्भ किया था तो उसकी क्या इच्छा थी कि कोई उसे क्या सलाह देता। उसने उत्तर दिया, "मेरी इच्छा थी कि कोई मुझे बताता कि जब आप शिखर पर पहुँच जाते हैं, तो वहाँ पर कुछ नहीं होता।" कई उद्देश्य अपने खालीपन को तब प्रकट करते हैं जब केवल उनका पीछा करने में कई वर्ष व्यर्थ हो गए होते हैं । हमारी मानवतावादी संस्कृति में, लोग कई उद्देश्यों का पीछा, यह सोचकर करते हैं कि इनमें वे उस अर्थ को पा लेंगे। इनमें से कुछ कार्यों में: व्यापारिक सफलता, धन-सम्पत्ति, अच्छे सम्बन्ध, यौन-सम्बन्ध, मनोरंजन, दूसरों के प्रति भलाई, वगैरह सम्मिलित है। लोगों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जब उन्होंने धन-सम्पत्ति, सम्बन्धों और आनन्द के लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया, तब भी उनके अन्दर एक गहरी शून्यता थी, खालीपन का एक ऐसा अहसास जिसे कोई वस्तु भरती हुई प्रतीत नहीं होती। बाइबल की सभोपदेशक नामक पुस्तक के लेखक ने इस बात का एहसास किया जब उसने कहा, "व्यर्थ ही व्यर्थ! व्यर्थ ही व्यर्थ ! ...सब कुछ व्यर्थ है" (सभोपदेशक 1:2)। राजा सुलेमान के पास, जो सभोपदेशक का लेखक है, परिमाप से परे अथाह धन-सम्...
दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त कीजिए
गृहस्थ जीवन में जितने भी सुख हैं, वे सब दाम्पत्य जीवन की सफलता पर सन्निहित हैं। दाम्पत्य जीवन सुखी न हुआ तो अनेक तरह के वैभव होने पर भी मनुष्य सुखी, सन्तुष्ट तथा स्थिरचित्त न रह सकेगा। जिनके दाम्पत्य जीवन में किसी रह का क्लेश कटुता तथा संघर्ष नहीं होता वे लोग बल, उत्साह और साहसयुक्त बने रहते हैं। गरीबी में भी मौज का जीवन बिताने की क्षमता दाम्पत्य जीवन की सफलता पर निर्भर है, इसे प्राप्त किया ही जाना चाहिए। वैवाहिक जीवन की असफलता में आर्थिक सामाजिक और संस्कारजन्य कारण भी होते हैं, किन्तु मुख्यतया—मनोवैज्ञानिक-व्यवहार की कमी के कारण ही दाम्पत्य जीवन असफल होता है। वस्तुओं का अभाव परेशानियाँ जरूर पैदा कर सकता है, किन्तु यदि पत्नी में पूर्ण प्रेम हो तो गृहस्थ जीवन में स्वर्ग तुल्य सुखोपभोग इसी धरती पर प्राप्त किए जा सकते हैं। दुःख का कारण केवल अनास्था और त्रुटिपूर्ण व्यवहार ही होता है। इसे सुधार लें तो दाम्पत्य जीवन शत-प्रतिशत सफल हो सकता है। सुखी दाम्पत्य का आधार है, पति-पत्नी का शुद्ध सात्विक प्रेम। जब दोनों एक दूसरे के लिए अपनी स्वार्थ भावना का परित्याग कर देते हैं, तब हृदय परस्पर मिले-जुले रहते हैं। प्रेम में अहंकार का भाव नहीं होता है। त्याग ही त्याग चाहिए विशुद्ध प्रेम के लिए। एक दूसरे के लिए जितने गहन तल से समर्पण की भावना होगी उतना ही प्रगाढ़ प्रेम होना चाहिए। दाम्पत्य सुख प्राप्त करने के लिए प्रेम का प्रयोग करना चाहिए। यह प्रेम त्याग भावना, कर्त्तव्य भावना से ही हो। सौंदर्य और वासना का प्रेम, प्रेम नहीं कहलाता। वह एक तरह का धोखा है। जो इस जंजाल में फँस जाते हैं, उनका दाम्पत्य जीवन बुरी तरह बेहाल हो जाता है। प्रेम आत्मा से करते हैं, शरीर ने नहीं, कर्त्तव्य से करते हैं, क...
दाम्पत्य और असंतोषः एक कहानी तस्वीरों की ज़ुबानी
1870 और 1920 के बीच की अवधि को पूरे भारत में दाम्पत्य/नव दाम्पत्य परियोजना (विवाहित जोड़े की एक नई कल्पना) को आगे बढ़ाने का उत्तम समय माना जा सकता है और यह महाराष्ट्र में भी बहुत अच्छी तरह से दिखाई देता है. इस अवधि के दौरान महिलाओं की जो आत्मकथाएं प्रकाशित हुईं , वे पति-पत्नी की जोड़ी के रूप में नव दाम्पत्य की विचारधारा को बनाए रखने में कोई कोताही नहीं बरततीं और अपने मिले-जुले प्रयास के माध्यम से नई गृहस्थी (परिवार) का मार्ग प्रशस्त करती हैं. इसकी एक चरम सीमा हमें रमाबाई रानाडे की आत्मकथा में दिखाई देती है जहां वह अपने बारे में नहीं अपने पति को केंद्र में रखकर लिखती हैं. इस समय के उपन्यासों में भी उसी प्रेम पर ज़ोर है जो एक ही जाति और वर्ग के युवा दिलों के बीच पनपता है और पति-पत्नी की जोड़ी के निर्माण पर समाप्त होता है. यह जोड़ा स्वभाव, अभ्यास और संस्कृति के माध्यम से एक-दूसरे से पूरी तरह मेल खाता है, और इतिहास में एक नवीन, आदर्श और उन्नत हिन्दू परिवार का सृजन करता है. प्रकाशित हो जाने के बाद, इन आत्मकथाओं को सुधारकों के अभिजात वर्ग के बीच प्रसारित किया गया. इनसे पति के निर्विवाद नेतृत्व में जोड़ीदार-विवाह को मज़बूत और संगठित करने का काम लिया गया. पिछले दो दशकों में, नारीवादी विचारकों ने अपने असाधारण कौशल से हमारे लिए सामाजिक इतिहास के इस दौर की रूपरेखा तैयार की है. इस शोध की प्रक्रिया में जो चीज़ महिमामंडन में उपेक्षित रह गई थी उसपर ध्यान दिया जैसे: महिलाओं की आत्मकथाओं के विषय, आधुनिक सुधरे हिन्दू गृहस्थ का गुणगान, और इसके अपने असंतोष. यह मुख्य रूप से उन विधवाओं द्वारा स्पष्ट किया गया था जिन्होंने सुधारकों द्वारा बनाई गई सुंदर छवियों को बाधित किया. बाल-पत्नी के उस सुथरेपन ...
Dampatya Jeewan mein Madhurta
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऊपर बताये गये कारण जिनसे एक दंपति के जीवन में संकट आने की संभावनाएं होती है किन्तु आप अपने दाम्पत्य जीवन को सुखद बनाये रखने के उपाय भी जरुर अपनाये. जिससे आप दोनों के बीच के प्रेम में मधुरता आये और आप हर संकट का मिल कर सामना कर सको. अपने दाम्पत्य जीवन में मधुरता भरने के लिए आप निमंलिखित उपायों को अपना सकते हो. · सकारात्मक नजरिया : अगर आपका नजरिया हमेशा नकारात्मक होता है तो आपको हर कार्य में कुछ न कुछ गलत दिख ही जाता है, यहाँ तक आप सकारात्मक में भी नकारात्मक को खोजने लगते हो. ये नकारात्मकता आपके दाम्पत्य जीवन को भी प्रभावित करती है और धीरे धीरे आपके मन में आपके साथी को लेकर असंतोष पैदा होने लगता है. इसके विपरीत अगर आप सिर्फ अच्छी बातो पर गौर करने लगो तो आपको हमेशा अच्छा ही अच्छा दिखाई देता है और आपके साथ भी हमेशा अच्छा ही होता है. मनोवैज्ञानिको के अनुसार कहा जाता है कि आप क्या देखना चाहते हो ये आप पर निर्भर करता है. एक सफल दम्पति हमेशा सकारात्मक नजरिये को अपनाते है और वे एक दुसरे की अच्छी बातो पर ज्यादा गौर करते ह. इसलिए उनके जीवन में हमेशा सकारात्मक होता है. सकारात्मक नजरिये से एक दम्पति के जीवन को मजबूती भी मिलती है. Dampatya Jeewan mein Madhurta · विश्वास : कहा जाता है कि दाम्पत्य जीवन के बीच की डोर विश्वास होती है. अगर एक दम्पति को एक दुसरे पर विश्वास होता है तो उनका जीवन सुखमय तरीके से व्यतीत होता है. विश्वास जीवन के हर मुस्किल समय में भी उन हालातो से लड़ने के लिए आपको शक्ति प्रदान करता है. आमतौर पर आपने देखा होगा कि लोग छोटी सी समस्या के आने पर भी एक दुसरे को दोष देना शुरू कर देते है और सामने वाले को दोषी ठहराने की कोशिश करते रहते है. ऐसा करने ...