Bhrashtachar ki jad kya hai

  1. नैतिक पतन पर निबंध
  2. Bhrashtachar par Nibandh (भ्रष्टाचार पर निबंध)
  3. भ्रष्टाचार पर हिन्दी में निबंध
  4. भ्रष्टाचार : कारण एवं निवारण
  5. Bhrashtachar : Ek Samasya “भ्रष्टाचार: एक समस्या” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph, Nibandh for Class 8, 9, 10, 12 Students.
  6. Gujarati Essay on "Bhrashtachar ek Shishtachar", "ભ્રષ્ટાચાર એ જ શિષ્ટાચાર નિબંધ" for Students
  7. भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? Bhrashtachar ki jad kya hai?
  8. भ्रष्टाचार : कारण एवं निवारण
  9. भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? Bhrashtachar ki jad kya hai?
  10. नैतिक पतन पर निबंध


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नैतिक पतन पर निबंध

ठीक यही स्थिति देश पर भी लागू होती है । जिस देश में नैतिकता का अभाव हो गया, उस देश का अस्तित्व बहुत दिनों तक कायम नहीं रह जाता । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है भारत में ब्रिटिश शासन । ब्रिटिश शासक सत्ता के गुरूर में मनुष्य को जानवर समझने लग गये थे और उसी अनुरूप भारतीयों के साथ व्यवहार करने लगे थे जिसका परिणाम उन्हें अपमानित होकर भारत से जाना पड़ा । ठीक इसके विपरीत जब भारतीयों में नैतिक मूल्यों ने और वैभव जड़ जमा लिया तो उस सत्ता को जिसके शासन में सूर्यास्त नहीं होता था , उसे देश से बाहर करने में देर नहीं लगी । यह सत्य है कि धन – दौलत , सुख नैतिकता ( सच्चरित्रता ) पर ही प्राप्तक किये जा सकते हैं । नैतिकता पर एक प्रसंग महाभारत में प्रह्लाद की कथा आती है । प्रह्लाद अपने समय का बड़ा प्रतापी और दानी राजा हुआ है । इसने नैतिकता ( शील ) का सहारा लेकर इन्द्र का राज्य ले लिया । इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रह्लाद के पास जाकर पूछा , “ आप को तीनों लोकों का राज्य कैसे मिला ? ” इसपर प्रह्लाद ने एक ही जवाब दिया कि जिस किसी के अंदर भी नैतिकता का गुण विद्यमान हो उसके लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है। नैतिकता के बल पर वह विश्व विजेता भी बन सकता है। प्रह्लाद के पास इन्द्र ब्राह्मण के वेश में पहुँचा। इसपर प्रह्लाद ने उनका खूब आदर-सत्कार किया तथा राज्योचित धर्म के अनुसार ब्राह्मण के वेश में आये इन्द्र देव से कुछ माँगने हेतु प्रार्थना की । इन्द्र ने मौके का लाभ उठाते हुए प्रसन्न होकर प्रह्लाद से नैतिकता का गुण माँग लिया । इसपर वचनबँध प्रह्लाद को अपनी नैतिकता इंद्र को देनी पड़ी । नैतिकता के चले जाते ही सत्य , सदाचार , धर्म, बल , लक्ष्मी सब प्रह्लाद का साथ छोड़ कर चले गये , क्योंकि ये सब वहीं...

Bhrashtachar par Nibandh (भ्रष्टाचार पर निबंध)

भ्रष्टाचार एक प्रकार की आपराधिक गतिविधि या बेईमानी को दर्शाता है। यह एक व्यक्ति या एक समूह द्वारा एक दुष्ट कार्य को संदर्भित करता है। सबसे उल्लेखनीय, यह अधिनियम दूसरों के अधिकारों और विशेषाधिकारों से समझौता करता है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार में मुख्य रूप से रिश्वतखोरी या गबन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं। हालाँकि, भ्रष्टाचार कई तरीकों से हो सकता है। सबसे शायद, प्राधिकरण के पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। भ्रष्टाचार निश्चित रूप से लालची और स्वार्थी व्यवहार को दर्शाता है। इस ब्लॉग में हम Bhrashtachar par Nibandh पढ़ेंगे। Paragraph Writing in Hindi [ अनुच्छेद क्या है? ] Corruption in Hindi : भ्रष्टाचार के तरीके सबसे पहले, रिश्वत भ्रष्टाचार का सबसे आम तरीका है। रिश्वत में व्यक्तिगत लाभ के बदले एहसान और उपहारों का अनुचित उपयोग शामिल है। इसके अलावा, एहसान के प्रकार विविध हैं। इन सबसे ऊपर, एहसानों में पैसा, उपहार, कंपनी के शेयर, यौन एहसान, रोजगार, मनोरंजन और राजनीतिक लाभ शामिल हैं। इसके अलावा, व्यक्तिगत लाभ हो सकता है – अधिमान्य उपचार और अपराध को नजरअंदाज करना। गबन चोरी के उद्देश्य के लिए संपत्ति को वापस लेने के अधिनियम को संदर्भित करता है। इसके अलावा, यह एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा होता है जिन्हें इन परिसंपत्तियों को सौंपा गया था। इन सबसे ऊपर, गबन वित्तीय धोखाधड़ी का एक प्रकार है। भ्रष्टाचार का एक वैश्विक रूप है। सबसे उल्लेखनीय, यह व्यक्तिगत लाभ के लिए एक राजनेता के अधिकार के अवैध उपयोग को संदर्भित करता है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार का एक लोकप्रिय तरीका राजनेताओं के लाभ के लिए सार्वजनिक धन को गलत तरीके से सीमित करना है। समय का महत्व (Samay ka Mahatva) का ...

भ्रष्टाचार पर हिन्दी में निबंध

• भ्रष्टाचार का मतलब होता है, भ्रष्ट आचरण. दूसरे शब्दों में वह काम जो गलत हो. भारत में भ्रष्टाचार चारों तरफ महामारी की तरह फैल गया है. सरकारी तन्त्र में यह ऊपर से नीचे तक फैल चुका है. जबकि निजी स्वामित्व वाले क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रह गए हैं. यह कहना अतिश्योक्ति बिल्कुल नहीं होगी, कि भ्रष्टाचार घर-घर में फैल गया है. पहले छोटे-मोटे घोटाले होते थे, आजकल लाखों करोड़ के घोटाले होना आम बात हो गई है. न्यायिक व्यवस्था भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रह गई है. एक आम व्यक्ति न्याय पाने में अपनी सारी धन-सम्पत्ति यहाँ तक कि अपनी पूरी उम्र गवां देता है, फिर भी इस बात की कोई गारंटी नहीं होती है कि उसे न्याय मिल पायेगा या नहीं. पुलिस से गुंडों को डरना चाहिए, लेकिन हालात ऐसे हैं कि एक शरीफ इंसान पुलिस से डरता है. वक्त बदला तो भ्रष्टाचार के रूप भी बदले. और साथ हीं भ्रष्टाचार की परिभाषा भी विस्तृत होती गई. पहले केवल हमलोग आर्थिक भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार मानते थे. लेकिन आज भ्रष्टाचार के कई रूप हैं, जैसे : आर्थिक भ्रष्टाचार, नैतिक भ्रष्टाचार, राजनितिक भ्रष्टाचार, न्यायिक भ्रष्टाचार, सामाजिक भ्रष्टाचार, सांस्कृतिक भ्रष्टाचार इत्यादि. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए राज्य या देश को मध्यावधि चुनाव में झोंकना राजनितिक भ्रष्टाचार का एक अच्छा उदाहरण है. न्याय मिलने में होनी वाली जानलेवा देरी न्यायिक भ्रष्टाचार का उदाहरण है. कुप्रथाएँ सामाजिक भ्रष्टाचार का उदाहरण है. युवाओं को गलत सांस्कृतिक पाठ पढ़ाना सांस्कृतिक भ्रष्टाचार है. भ्रष्टाचार तबतक खत्म नहीं हो सकता है, जबतक आम लोगों का ईमान नहीं जागेगा. आज हालात ऐसे हैं, कि नेताओं के आर्थिक भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले लोग खुद नैतिक...

भ्रष्टाचार : कारण एवं निवारण

निबंध की रूपरेखा • • • • • • • • • भ्रष्टाचार का कारण एवं निवारण प्रस्तावना भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट-आचरण, किन्तु आज यह शब्द ‘रिश्वतखोरी’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। भ्रष्टाचार की यह समस्या इतनी व्यापक हो गई है कि हम यहाँ तक कहने लगे हैं कि आज के युग में ‘भ्रष्टाचार’ से वही बच पाता है जिसे भ्रष्ट होने का अवसर नहीं मिल पाता। नग्न सत्य तो यह है भ्रष्टाचार हमारी पहचान है, हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। आज के इस युग में राजनीतिज्ञ, अधिकारी, न्यायाधीश, वकील, शिक्षक, डॉक्टर, राजकर्मचारी, इन्जीनियर सबके सब भ्रष्ट हैं। देखें – भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र भारत में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हैं तथा यह इतना सर्वव्यापी है कि हम भ्रष्टाचार को ही अपना चरित्र कह सकते हैं। यद्यपि भारत एक आध्यात्मिक देश है और इतिहास साक्षी है कि हम लोग सन्तोषी जीव रहे हैं तथापि धन लिप्सा ने हमें अपनी नैतिकता, मानवतावादी मूल्यों से जैसा वर्तमान समय में विचलित कर दिया है, वैसा पहले कभी नहीं था। धर्म, अध्यात्म, नैतिकता भले ही हमें सदाचार की शिक्षा देते हों, किन्तु हमारा आचरण दिनों दिन भ्रष्ट होता जा रहा है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर देनी आवश्यक है और वह यह है कि भ्रष्टाचार का तात्पर्य केवल ‘रिश्वत’ ही नहीं, अपितु अनुचित मुनाफाखोरी, करों की चोरी, मिलावट, कर्तव्य के प्रति उदासीनता, सरकारी साधनों का अनुचित प्रयोग भी भ्रष्टाचार की परिधि में आते हैं। “ आइए हम अपने-अपने गिरेबान में झाँककर देखें और फिर इस कथन की परीक्षा को क्या भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र नहीं है?“ भ्रष्टाचार की व्यापकता स्वतन्त्रता प्राप्ति के अवसर पर देश की जनता ने यह परिकल्पना की थी कि अब हमारी अपनी सरकार होगी और हमें भ्रष्टा...

Bhrashtachar : Ek Samasya “भ्रष्टाचार: एक समस्या” Essay in Hindi, Best Essay, Paragraph, Nibandh for Class 8, 9, 10, 12 Students.

Hindi-Essays भ्रष्टाचार का अर्थ है-भ्रष्ट आचरण। रिश्वत, कामचोरी मिलावट कालाबाजारी, मनाफाखोरी, भाई-भतीजावाद, जमाखोरी, अनुचित कमीशन लेना, चोरों-अपराधियों को सहयोग देना आदि सब भ्रष्टाचार के रूप हैं। दुर्भाग्य से आज भारत म भ्रष्टाचार का बोलबाला है। चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक सब भ्रष्टाचार के दलदल में लथपथ हैं। लज्जा का बात यह है कि स्वयं सरकारी मंत्रियों ने करोड़ों-अरबों के घोटाले किए हैं। भ्रष्टाचार फैलने का सबसे बड़ा कारण है-प्रबल भागवादा हर कोई संसार-भर की संपत्ति को अपने पेट, मुंह और घर में भर लेना चाहता है। दूसरा बड़ा कारण है-नैतिक, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा का अभाव। अन्य कुछ कारण हैं-भूख, गरीबी, बेरोजगारी आदि। भ्रष्टाचार को मिटाना सरल नहीं है। जब तक कोई ईमानदार शासक प्रबल इच्छा शक्ति से भ्रष्टाचार के गढ को नहीं तोडता, तब तक इसे सहना होगा। इसके लिए भा शिक्षकों, कलाकारों और साहित्यकारों को अलख जगानी होगी।

Gujarati Essay on "Bhrashtachar ek Shishtachar", "ભ્રષ્ટાચાર એ જ શિષ્ટાચાર નિબંધ" for Students

Essay on Corruption in Gujarati: In this article " ભ્રષ્ટાચાર એક સમસ્યા વિશે ગુજરાતી નિબંધ", " ભ્રષ્ટાચાર એ જ શિષ્ટાચાર નિબંધ", " Bhrashtachar ek Shishtachar Essay in Gujarati"for students of class 5, 6, 7, 8, 9, and 10. Gujarati Essay on " Bhrashtachar ek Shishtachar", " ભ્રષ્ટાચાર એ જ શિષ્ટાચાર નિબંધ"for Students આજના યુગમાં સર્વત્ર ભ્રષ્ટાચારનું સામ્રાજ્ય પ્રવર્તે છે. જ્યાં જુઓ ત્યાં બધે ભ્રષ્ટ આચાર જોવા મળે છે. જાહેરજીવનનું એક પણ ક્ષેત્ર એવું બાકી નથી રહ્યું, જ્યાં આ સડો ના પેઠો હોય. રાજકારણ તો જાણે ભ્રષ્ટાચારનો પૂરો અડ્ડો બની ગયું છે. પરંતુ શિક્ષણ, વ્યાપાર અને રમતગમત જેવી યાદીમાં તમે ઉમેરી શકો એ બધાંય ક્ષેત્રોમાં ભ્રષ્ટાચાર વ્યાપેલો જોવા મળશે. પહેલાંના સમયમાં શુદ્ધ રાષ્ટ્રપ્રેમ અને નિઃસ્વાર્થ સેવાના ભાવથી લોકો રાજનીતિ અપનાવતા હતા. પોતાની સંપત્તિ પણ રાષ્ટ્રને ચરણે ધરતા હતા. આમ છતાં પોતાને મળતી સત્તા કે સગવડનો સદુપયોગ કરીને સાધનશુદ્ધિ સાચવતા હતા. આજના રાજકીય નેતાઓમાં એમાંનું એક પણ લક્ષણ જોવા નથી મળતું. રાષ્ટ્રપ્રેમને બદલે માત્ર દ્રવ્ય-પ્રેમથી જ તેઓ ચૂંટણીમાં ઝુકાવે છે. ધાકધમકી અને કાળું નાણું વેરીને તે જીતે છે. સરકારમાં એકાદ ખાતું કે હોદો મળતાં જ પૈસા ઊભા કરવા માંડે છે. પોતાની સંપત્તિ રાષ્ટ્રને અર્પણ કરવાને બદલે રાષ્ટ્રની સંપત્તિ ઘરભેગી કરવા માંડે છે. વિદેશી બેંકોમાં નાણાં જમાવીને નિરાંતે ઊંઘવા લાગે છે. યથા રાજા તથા પ્રજા એ ન્યાયે પ્રજામાં પણ ભ્રષ્ટાચાર પાંગર્યો છે. વેપારીવર્ગ માલમાં ભેળસેળ કરે છે. તેલ, અનાજ કે દવા સુધ્ધાં ભેળસેળથી બચ્યાં નથી. એનાથી ત્રાસીને એક યુવાન ઝેરી દવા ગટગટાવી ગયો પરંતુ એ બિચારો મરી ન શક્યો, કારણ કે ઝેરમાં પણ ભેળસેળ નીકળી. એથી તેને યમઘરને બદલે આત...

भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? Bhrashtachar ki jad kya hai?

सवाल:भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? भ्रष्टाचार से आज कोई भी अछूता नहीं है! भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें बहुत गहरी कर दी है ,आज हम भ्रष्टाचार की जड़ों के बारे में बात करेंगे तो हम सीधे सीधे अपने खुद के बारे में बात कर रहे हैं। अपने समाज के बारे में ही बात कर रहे हैं, अपने आसपास के लोगों के बारे में ही बात कर रहे हैं। आज भ्रष्टाचार छोटे से लेकर बड़े ओहदे वाले लोग सभी इसमें लिप्त हैं। मैं अपने साथ हाल ही में गुजरा एक वाक्याआपको सुनाता हूं मैं बिना हेलमेट के अपने शहर में गाड़ी चला रहा था, तो ट्रैफिक पुलिस वालों ने मुझे पकड़ लिया और मैं जल्दी छुटने के लिए उनको कुछ पैसे दिए तो उन्होंने मुझे कुछ समय बाद छोड़ दिया तो वहां से मैंने देखा कि भ्रष्टाचार किस तरह लोगों के दिलों दिमाग में बैठा हुआ है| आज अगर हम भ्रष्टाचार को हटाने के बात कर रहे हैं तो सर्वप्रथम खुद को इस चीज से जुदा करना पड़ेगा अपने घर वालों को इससे जुदा करवाना पड़ेगा। बहुत से नेता लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं जिससे देश की तरक्की नहीं हो रही है, पर कुछ चंद नेता ऐसे भी है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है पर सिर्फ उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ होने से कुछ नहीं होगा| अब हमे भी एक पहल करनी होगी और पहले स्वयं को इस चीज से अलग करना होगा हमें भ्रष्टाचार को खुद के अंदर से मिटाना होगा तभी इस समाज में कुछ परिवर्तन आ सकता है, और हमें यह भी ध्यान रखना होगा की अपना काम निकालने के लिए हम किसी को रिश्वत ना दें और ना ही देने दे समाज में कुछ वास्तव में परिवर्तन लाना चाहते हो तो उठो जागो और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक पहल करो।

भ्रष्टाचार : कारण एवं निवारण

निबंध की रूपरेखा • • • • • • • • • भ्रष्टाचार का कारण एवं निवारण प्रस्तावना भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट-आचरण, किन्तु आज यह शब्द ‘रिश्वतखोरी’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है। भ्रष्टाचार की यह समस्या इतनी व्यापक हो गई है कि हम यहाँ तक कहने लगे हैं कि आज के युग में ‘भ्रष्टाचार’ से वही बच पाता है जिसे भ्रष्ट होने का अवसर नहीं मिल पाता। नग्न सत्य तो यह है भ्रष्टाचार हमारी पहचान है, हमारा राष्ट्रीय चरित्र है। आज के इस युग में राजनीतिज्ञ, अधिकारी, न्यायाधीश, वकील, शिक्षक, डॉक्टर, राजकर्मचारी, इन्जीनियर सबके सब भ्रष्ट हैं। देखें – भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र भारत में भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हैं तथा यह इतना सर्वव्यापी है कि हम भ्रष्टाचार को ही अपना चरित्र कह सकते हैं। यद्यपि भारत एक आध्यात्मिक देश है और इतिहास साक्षी है कि हम लोग सन्तोषी जीव रहे हैं तथापि धन लिप्सा ने हमें अपनी नैतिकता, मानवतावादी मूल्यों से जैसा वर्तमान समय में विचलित कर दिया है, वैसा पहले कभी नहीं था। धर्म, अध्यात्म, नैतिकता भले ही हमें सदाचार की शिक्षा देते हों, किन्तु हमारा आचरण दिनों दिन भ्रष्ट होता जा रहा है। यहाँ एक बात स्पष्ट कर देनी आवश्यक है और वह यह है कि भ्रष्टाचार का तात्पर्य केवल ‘रिश्वत’ ही नहीं, अपितु अनुचित मुनाफाखोरी, करों की चोरी, मिलावट, कर्तव्य के प्रति उदासीनता, सरकारी साधनों का अनुचित प्रयोग भी भ्रष्टाचार की परिधि में आते हैं। “ आइए हम अपने-अपने गिरेबान में झाँककर देखें और फिर इस कथन की परीक्षा को क्या भ्रष्टाचार हमारा राष्ट्रीय चरित्र नहीं है?“ भ्रष्टाचार की व्यापकता स्वतन्त्रता प्राप्ति के अवसर पर देश की जनता ने यह परिकल्पना की थी कि अब हमारी अपनी सरकार होगी और हमें भ्रष्टा...

भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? Bhrashtachar ki jad kya hai?

सवाल:भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? भ्रष्टाचार से आज कोई भी अछूता नहीं है! भ्रष्टाचार ने अपनी जड़ें बहुत गहरी कर दी है ,आज हम भ्रष्टाचार की जड़ों के बारे में बात करेंगे तो हम सीधे सीधे अपने खुद के बारे में बात कर रहे हैं। अपने समाज के बारे में ही बात कर रहे हैं, अपने आसपास के लोगों के बारे में ही बात कर रहे हैं। आज भ्रष्टाचार छोटे से लेकर बड़े ओहदे वाले लोग सभी इसमें लिप्त हैं। मैं अपने साथ हाल ही में गुजरा एक वाक्याआपको सुनाता हूं मैं बिना हेलमेट के अपने शहर में गाड़ी चला रहा था, तो ट्रैफिक पुलिस वालों ने मुझे पकड़ लिया और मैं जल्दी छुटने के लिए उनको कुछ पैसे दिए तो उन्होंने मुझे कुछ समय बाद छोड़ दिया तो वहां से मैंने देखा कि भ्रष्टाचार किस तरह लोगों के दिलों दिमाग में बैठा हुआ है| आज अगर हम भ्रष्टाचार को हटाने के बात कर रहे हैं तो सर्वप्रथम खुद को इस चीज से जुदा करना पड़ेगा अपने घर वालों को इससे जुदा करवाना पड़ेगा। बहुत से नेता लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं जिससे देश की तरक्की नहीं हो रही है, पर कुछ चंद नेता ऐसे भी है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ है पर सिर्फ उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ होने से कुछ नहीं होगा| अब हमे भी एक पहल करनी होगी और पहले स्वयं को इस चीज से अलग करना होगा हमें भ्रष्टाचार को खुद के अंदर से मिटाना होगा तभी इस समाज में कुछ परिवर्तन आ सकता है, और हमें यह भी ध्यान रखना होगा की अपना काम निकालने के लिए हम किसी को रिश्वत ना दें और ना ही देने दे समाज में कुछ वास्तव में परिवर्तन लाना चाहते हो तो उठो जागो और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक पहल करो।

नैतिक पतन पर निबंध

ठीक यही स्थिति देश पर भी लागू होती है । जिस देश में नैतिकता का अभाव हो गया, उस देश का अस्तित्व बहुत दिनों तक कायम नहीं रह जाता । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है भारत में ब्रिटिश शासन । ब्रिटिश शासक सत्ता के गुरूर में मनुष्य को जानवर समझने लग गये थे और उसी अनुरूप भारतीयों के साथ व्यवहार करने लगे थे जिसका परिणाम उन्हें अपमानित होकर भारत से जाना पड़ा । ठीक इसके विपरीत जब भारतीयों में नैतिक मूल्यों ने और वैभव जड़ जमा लिया तो उस सत्ता को जिसके शासन में सूर्यास्त नहीं होता था , उसे देश से बाहर करने में देर नहीं लगी । यह सत्य है कि धन – दौलत , सुख नैतिकता ( सच्चरित्रता ) पर ही प्राप्तक किये जा सकते हैं । नैतिकता पर एक प्रसंग महाभारत में प्रह्लाद की कथा आती है । प्रह्लाद अपने समय का बड़ा प्रतापी और दानी राजा हुआ है । इसने नैतिकता ( शील ) का सहारा लेकर इन्द्र का राज्य ले लिया । इन्द्र ने ब्राह्मण का रूप धारण करके प्रह्लाद के पास जाकर पूछा , “ आप को तीनों लोकों का राज्य कैसे मिला ? ” इसपर प्रह्लाद ने एक ही जवाब दिया कि जिस किसी के अंदर भी नैतिकता का गुण विद्यमान हो उसके लिए ऐसा करना कोई बड़ी बात नहीं है। नैतिकता के बल पर वह विश्व विजेता भी बन सकता है। प्रह्लाद के पास इन्द्र ब्राह्मण के वेश में पहुँचा। इसपर प्रह्लाद ने उनका खूब आदर-सत्कार किया तथा राज्योचित धर्म के अनुसार ब्राह्मण के वेश में आये इन्द्र देव से कुछ माँगने हेतु प्रार्थना की । इन्द्र ने मौके का लाभ उठाते हुए प्रसन्न होकर प्रह्लाद से नैतिकता का गुण माँग लिया । इसपर वचनबँध प्रह्लाद को अपनी नैतिकता इंद्र को देनी पड़ी । नैतिकता के चले जाते ही सत्य , सदाचार , धर्म, बल , लक्ष्मी सब प्रह्लाद का साथ छोड़ कर चले गये , क्योंकि ये सब वहीं...